गांधी आध्यत्मिकतावादी हैं, मार्क्स भौतिकवादी। मार्क्स की समझ द्वंद्ववादी है गांधी की समझ में द्वंद्वात्मकता का अभाव है। ग्राम-स्वराज का गांधी का राजनैतिक अर्थशास्त्र रूसो के जनरल विल की तरह रुमानी है जो प्राचीन (पूर्व-आधुनिक) समाज की व्यवस्था हो सकती है आधुनिक औद्योगिक समाज की नहीं। मार्क्स का राजनैतिक अर्थशास्त्र ऐतिहासिक भौतिकवादी है, जिसका मूलमंत्र है -- अर्थ ही मूल है बाकी वैधानिक, सांस्कृतिक तथा बौद्धिक संरचनाएं उसकी व्युत्पत्ति, जो आध्यात्मिक नहीं वैज्ञानिक है। गांधी वर्णाश्रम में सुधार के पक्षधर थे, मार्क्स सामूहिक स्वामित्व वाले समतामूलक समाज के। पूंजीवाद (आधुनिकता) की गांधी की आलोचना आदर्शवादी है मार्क्स की द्वंद्वात्मक भौतिकवादी।
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