उत्तर-वैदिक गणतंत्र
ईश मिश्र
कितना अद्भुत लगता है, विश्वबैंक की वफादारी और
नेहरू-गांधी जनतांत्रिक राजघराने के प्रति असीम भक्ति-भाव के आधार पर तख्तासीन
प्रधानमंत्री का गणतंत्र-दिवस का सन्देश कितना अद्भुत लगता है? पुलिस छावनी में
तब्दील, सत्रहवीं शताब्दी के एक शहन्शाह के महल, लाल किले की बुलेट-प्रूफ प्राचीर
से प्रधानमंत्री को गणतंत्रीय विमर्श पढते हुए देख, कौटिल्य का अर्थशास्त्र
कितना समकालीन लगने लगता है और उत्तर-वैदिक, जनतांत्रिक, गण-राज्यों की ऐतिहासिकता
कितनी विस्मयकारी!. अर्थशास्त्र में युद्ध-अभियानों और सैन्य-शक्ति की वैधता
पर आधारित विजीगिशु (विजयकामी राजा) की सुरक्षा सर्वोपरि है, क्योंकि वह सप्तांग
राज्य के रथ के पहिये की धुरी है, बाकी तीलियां. इस विजिगीषु, राजर्षि को हर किसी
से खतरा हो सकता है, सहयोगियों और यहाँ तक कि पत्नियों से भी. इसलिए अर्थशास्त्र
में इसकी अभेद्य, सुरक्षा के व्यापक उपायों का वर्णन है. सर्व्यापी गुप्तचर
व्यवस्था का एक विंग सीधे राजा के नियंत्रण में होता है. सिंधु से सरस्वती के बीच
रहने वाले सप्त-सैन्धव ऋगवैदिक आर्यों के वंशज सरस्वती सूखने के बाद जब गंगा के
मैदानों में पूरब बढ़ते हुए राजतंत्र स्थापित
करते गए. सेनापति/पुरोहित राजा बन गए. गंगा के उत्तर बसे लोगों को ऋगवैदिक समुदायिक जीवन की आज़ादी और समानतापूर्ण सौहार्द
की यादें सताने लगीं. उन्होंने ने एक-एक करके सभी राज-तंत्रों उखाड फेंका और सहमति
के शासन की व्यवस्था स्थापित किया, जिन्हें उत्तर-वैदिक गणराज्य कहा जाता है.
बुद्धकाल के पहले भारतीय-दर्शन की विभिन्न धाराओं में राज्य की उत्पत्ति और विकास की व्याख्या के
अर्थ में, में राजनैतिक चिंतन का अभाव रहा है. तब तक एक शासनव्यवस्था या संस्था के रूप में,
राज्य की जड़ें नहीं जम पायीं थी. महाजनपद काल से, खास भौगोलिक क्षेत्र में
शासन-तंत्र के रूप में राज्य ने ठोस आकार लेना शुरू किया. गंगा के दक्षिणी, मैदानी
इलाकों में मगध, काशी आदि नियमति, पेशेवर सैन्य-तंत्र पर आधारित राजतंत्र थे और
गंगा के उत्तर के मैदानी इलाकों में, इतिहासकारों के अनुसार, उत्तर वैदिक गणतंत्र.
राहुल सांकृत्यायन का उपन्यास सिंह सेनापति इन गणों की सामाजिक-व्यवस्था,
प्रधान एवं परिषदों के चुनावों एवं युद्ध-अभियानों की रणनीतियों के निर्माण में
व्यापक जन-भागीदारी और भूमिका का एक बृहद आइना है. राज्य की उत्पत्ति और विकास का
पहला व्यवस्थित वर्णन दीघनिकाय और अनुगत्तरानिकाय नाम से संकलित
बौद्ध ग्रंथों में मिलता है. इन ग्रंथों में राज्य की उत्पत्ति के सामाजिक अनुबंध
सिद्धांत का प्रतिपादन किया गया है. प्राकृतिक राज्य में लोग प्राकृतिक कानूनों का
पालन करते हुए मौज से रहते थे. लेकिन कुछ दुष्ट लोगों का चावल चुराने लगे, जिससे
अराजकता की स्थिति पैदा होगी. इससे निजात पाने के लिए लोगों ने एक महासम्मत का
चुनाव किया जो धम्मा (नैतिक जीवन के सिद्धांत) के आधार पर ऐसे लोगों को
दण्डित करेगा जिससे अन्य लोग भय से ऐसा न करें. इसके लिए लोग महासम्मत को अपनी उपज
का कुछ हिस्सा देंगे. विचार हवा में से नहीं आते. संस्कृत ग्रंथों में कौटिल्य का अर्थशास्त्र
पहला व्यवस्थित, समग्र ग्रथ है, जिसे राजनैतिक दर्शन/चिंतन की कोटि में रखा
जाता है.
गंगा पार के राजतंत्र, खासकर मगध, इन छोटे-छोटे गणराज्यों की खुशहाली देख, नियमित सेना के दंभ पर इन पर
हमले करते थे और पराजित होते थे. इस साझी विपदा से निदान पाने के लिए वैशाली
गणराज्य के नेतृत्व में लिच्छवी समेत् १२ गणराज्यों ने एक महासंघ बना रखा था. मगध
के विभिन्न शासकों को खदेड़ने के बाद इन गणराज्यों के रण-बांकुरे बिना लूट-पाट के
वापस चले जाते थे. इनमें विस्तार भाव नहीं था. उनकी अपनी प्राकृतिक संपदाएं और
संसाधन आज़ादी की हवा में चैन से जीने के लिए पर्याप्त थे.युद्धों में महिलायें भी
शिरकत करतीं थीं. ज्यादातर मेडिकल कोर जैसे विभाग में रहतीं थीं, लेकिन कुछ
महिलायें, घोड़े पर सवार, तीर-तलवार के कौशल से भी दुश्मनों के छक्के छुडा देतीं
थीं. इन गणराज्यों के पास कोई नियमित, वेतनभोगी सेना नहीं होती थी. सभी नागरिक
सैन्य कौशल के किसी-न-किसी पहलू में प्रशिक्षित होते थे. युद्ध की अपरिहार्यता की
स्थिति में -- शिक्षक, छात्र, किसान, कारीगर, पशुपालक, पुजारी -- सभी अपने औजार रख
कर हथियार उठा लेते थे. निर्वाचित मुखिया की जीवन-शैली और जीवन स्तर, गणराज्य के
अन्य नागरिकों के समान ही होता था और उसे किसी विशेष सुरक्षा की आवश्यकता नहीं
होती थी.
राजतन्त्र को ही वांछनीय शासन व्यवस्था मानाने वाले, कौटिल्य भी सैद्धांतिक
ढाँचे के रूप इन गणतंत्रों का ज़िक्र अर्थशास्त्र में कई जगहों पर करते हैं. विजीगिशु को, किसी भी
संघ के साथ प्रत्यक्ष युद्ध में न उलझने की सलाह देते हैं. उनके साथ मन्त्र-युद्ध
एवं शाम-दाम-भेद समेत अन्य कूटनीतिक उपायों का इस्तेमाल करना चाहिए. क्योंकि संघ
सघन बुनावट का एकताबद्ध समग्रता होता है.
इन उत्तर-वैदिक गणराज्यों का इतिहास, एथेंस सरीखे यूनानी नगर-राज्यों की जनतंत्रात्मक व्यवस्थाओं
और प्लेटो के ग्रन्थ गणराज्य (रिपब्लिक) के इतिहास से पुराना है. प्लेटो का
गणराज्य वस्तुतः गण-विहीन है. वर्णाश्रम की तर्ज पर
प्रतिपादित उसके आदर्श राज्य के हाशिए पर भी जनगण नहीं हैं.
जनतांत्रिक एथेंस और गणतांत्रिक रोम अपने-अपने समय के, क्रमशः सबसे बड़े
उपनिवेशवादी और विस्तारवादी थे.
क्यों नहीं पढ़ाया जाता हमें इन गणराज्यों का इतिहास? इतना ही नहीं, एक
महत्वपूर्ण गणराज्य, लिच्छवी के नगारिक गौतम बुद्ध को जन्मना राजकुमार बताया जाता
है और तर्कों के दिवालिएपन में
ब्राह्मणवाद उन्हें विष्णु का अवतार घोषित कर देता है. श्यामनारायण पाण्डेय
की हल्दी घाटी जैसी युद्धोन्मादी कवितायें तो होश सम्हालते ही रटा दी जाती
हैं, हमारी जनतांत्रिक विरासतें क्यों नहीं पढाई जाती हैं जबकि रक्तपात की काबिलियत
से महान बने सम्राटों की कहानियां तो प्रशस्ति-भाव से पढ़ाई जाती हैं?
ईश मिश्र
१७ बी, विश्वविद्यालय मार्ग
हिंदू कालेज, दिल्ली विश्वविद्यालय
दिल्ली ११०००७
mishraish@gmail.com
14.11.2012