Monday, August 21, 2023

मार्क्सवाद 292 (सांप्रदायिकता)

 समाज में सांप्रदायिक जहर फैलाने के लिए अपने भगवानों द्वारा के रटाए गए हिंदू-मुस्लिम नरेटिव के भजन से सरकारी लूट और मंहगाई-बेरोजगारी से ध्यान भटकाने वाले अंधभक्त आत्मरक्षा में विरोधियों को चमचा कहते हैं जबकि भक्तिभाव चमचागीरी की अनिवार्य शर्त है। ऐसे ही एक भक्त के कमेंट का एक जवाब:


भक्तिभाव ही चमचागीरी को जन्म देते हैं जैसे सांप्रदायिक ताकतें स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान अंग्रेजों की भक्ति में उनकी बांटो-राज करो नीति के एजेंट बनकर उपनिवेश-विरोधी विचारधारा के रूप में उभर रहे भारतीय काष्ट्रवाद को खंडित करने के लिए औपनिवेशिक चमचे थे और अब हिंदू-मुसल्लिम नरेटिव के भजन के पीछे छिपकर, देश की समासिक संस्कृति को विखंडित कर; सार्वजनिक संपत्तियों को अपने चहेते देशी-विदेशी धनपशुओं को औने-पौने दाम पर बेचकर; खेती और शिक्षा का कॉरपोटीरण तथा रक्षा और फुटकर बाजार समेत सभी क्षेत्रों में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के कानून बनाकर अमेरिकी नेतृत्व के भूमंडलीय साम्राज्यवाद की चमचागीरी कर रहे हैं। आप जैसे सरकारी भक्त धर्म के नशे में धुत पेट पर लात को भी प्रसाद समझकर खाते हुए सरकार के आईटी सेल द्वारा रटाया भजन गाते हुए प्रकारांतर से भूमंडलीय साम्राज्यवाद की चमचागीरी ही कर रहे हैं जैसे आपके वैचारिक पूर्वज औपनिवेशिक साम्राज्यवाद के चमचे थे। थोड़ा दिमाग लगाइए तो मेरी बातें समझ में आ जाएंगी। शिक्षक होने के नाते मेरा फर्ज है कि नासमझी में नफरती भजन गाने वाले भक्तों को विवेक सम्मत इंसान बनाने की कोशिस करता रहूं। हमारे आदिम पूर्वजों ने विवेक के इस्तेमाल से ही खुद को पशुकुल से अलग करना शुरू किया था।

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