Monday, August 28, 2023

शिक्षा और ज्ञान 319 (वेद)

 मनुष्य के चिंतन और कल्पना की उड़ान उसके द्वारा देखी-सुनी वस्तुओं; घटना-परिघटनाओं (exposure) से निर्धारित होती है, हमारे ऋगवैदिक पूर्वजों के चिंतन और कल्पना की उड़ान उनके परिवेश की सीमाओं पर ही आधारित थी। वेद में वैदिक काल के बाद की परिघटनाओं की व्याख्या खोजना रेगिस्तान में मोती की तलाश सा है। सभी रचनाएं समकालिक होती हैं, ऋगवेद जैसी महान रचनाएं सर्वकालिक हो जाती हैं।

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