हमारे गांव के प्राइमरी स्कूल में स्कूल इंस्पेक्टर या एसडीआई (डिप्टी साहब) का मुआयने के लिए आना बहुत बड़ी घटना होती थी। ऐसी ही एक मुआयने में मैं कक्षा 4 से 5 में चला गया। स्कूल में 3 टीचर थे और गदहिया गोल मिललाकर 6 कक्षाएं। सबसे जूनियर टीचर एक कमरे मेंंंं गदहिया गोल और कक्षा 1 को पढ़ाते थे, उनसे सीनियर एक कमरे में कक्षा 2 और 3। हेडमास्टर एक कमरे में कक्षा4 और 5। डिप्टी साहब ने कक्षा5 के छात्रों से अंकगणित का कोई सरल सा सवाल पूछा और कोई नहीं बता पाया सब खड़े हो गए। जहां कक्षा 5 की टाट खत्म होती 4 की वहीं से शुरू होती। 4 की टाट पर पहला छात्र मैं था मैंने खड़े होकर फटाक से सही जवाब दे दिया। डिप्टी साहब बहुत खुश हुए। बाबू साहब (हमारे हेड मास्टर) ने कहा कि मैं ्भी कक्षा 4में था। डिप्टी साहब ने कहा इसे 5 में करो। और अगले दिन से मैं कक्षा 5 का छात्र हो गया। उस समय ब्राह्मण शिक्षक को पंडित जी, क्षत्रिय को बाबू साहब, भूमिहार को राय साहब तथा अन्य जातियों के शिक्षक को मुंशीजी कहा जाता था और मुसलमान शिक्षक को मौलवी साहब। अगले दिन जब मैं कक्षा 5 की टाट पर बैठा तो बाबूसाहब ने आपत्ति की कि लग्गूपुर (8 किमी दूर सबसे नजदीक मिडिल स्कूल) जातेे समय सलारपुर के बाहा मे बह जाऊंगा। ( रास्ते में हमारे गांव े बाद का अगला गांव सलारपुर था और बर्षात में खेतों से निकास के पानी की नाली को बाहा कहा जाता था)। मैंने कहा अब चाहे बह जाऊं या डूब जाऊं , डिप्टी साहब ने कह दिया कि अब मैं 5 में पढ़ूंगा तो 5 में ही पढ़ूंगा। इसतरह एक मौखिक सवाल से मैं कक्षा 4 से 5 में चला गया और कक्षा 10 की बोर्ड परीक्षा की न्यूनतम आयु पूरी करने के लिए टीसी में उम्र ओक साल 4 महीने अधिक लिखनी पड़ी और अंत में लगभगडेढ़ साल पढ़ाने के सुख से वंचित हो गया।
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