Sunday, August 13, 2023

मार्क्सवाद 289 (सांप्रदायिकता)

 सांप्रदायिकता राष्ट्रवाद नहीं, राष्ट्रद्रोह है जिसका ईजाद औपनिवेशिक शासकों की शह पर उपनिवेश-विरोधी विचारधारा के रूप में उभर रहे भारतीय राष्ट्रवाद को विखंडित करने के लिए किया और उन्हें बांटो और राज-करो की नीति के एजेंट के रूप में दोनों ही प्रमुख धार्मिक समुदायों (हिंदू - मुसलान) से विश्वसनीय एजेंट भी मिल गए।इन औपनिवेशिक एजेंटों की मेहनत रंग लाई तथा अभूतपूर्व सांप्रदायिक नफरत और खूनखराबे के साथ देश विखंडित हो गया हो गया जिसका घाव नासूरबन अब तक रिस रहा है और जाने कब तक रिसता रहेगा। फैज के शब्दों में, खून के धब्बे धुलेंगे कितनी बरसातों के बाद। स्वतंत्रता संग्राम में देश का आवाम लड़ा भारत की आजादी के लिए लेकिन आजाद हुए हिंदुस्तान और पाकिस्तान। दोनों विखंडितभागों में इन्होने सांप्रदायिकता को राष्ट्रवाद के रूपमें पेश करना शुरू किया। एक भाग पाकिस्तान में तो बंटवारे के बाद ही सांप्रदायिक ताकतें सत्ता में आ गयीं और इस्लामी सांप्रदायिकता वहां राष्ट्रवाद बन गयी। हिंदुस्तान बहुत समय तक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र बना रहा और हिंदुत्व सांप्रदायिकता हिंदुस्तान में हिंदुत्व सांप्रदायिक औपनिवेशिक एजेंचों के वारिशों के सत्ता पर काबिज होने के बावजूद अभी भी हिंदुत्व सांप्रदायिकता राष्ट्रवादनहीं बन पाया है, संवैधानिक रूप से अभी भी यह धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र बना हुआ है। यद्यपि हिंदुत्व सांप्रदायिकता प्रकारांतर से फासीवादी चरित्र अख्तियार कर चुका है। सरकारी शह पर सांप्रदायिक ताकतें सांप्रदायिक नफरत और हिंसा फैलाकर पर देश में नफरत और हिंसा की आग लगाने में जी-जान से जुटी हैंं लेकिन उम्मीद है कि भारत जैसे बहुलता के देश में वे कामयाब नहीं होंगी, आइए संकल्प लें कि हम भारत को पाकिस्तान नहीं बनने देंगे। यदि विखंडित भारत के तीनों भागों का आवाम जनतांत्रिक प्रतिबद्धता से कोशिस करे तो हम शायद मिलकर विभाजन रेखाओं को मिटाकर स्वतंत्रता सेनानियों के अखंड भारत के सपने को साकार कर सकें। धर्म यदि राष्ट्रवाद का वैध आधार होता तो पाकिस्तान के दो टुकड़े न होते। आइए स्वतंत्रता संग्राम के सेनानियों और शहीदों के एक आजादभारत के सपने को साकार करने का सपना देखें।

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