Monday, August 28, 2023

बेतरतीब 149 (चुंगी)

 चुंगी के सदस्यों से परिचय 2

1. भूमिका (भाग 2)
बचपन में पूरे गांव में मेरी बहुत अच्छे बालक की छवि थी उस छवि को निखारने के लिए मैं और अच्छा बनने की कोशिस करता. 8वीं में स्कूल में एक टीचर बच्चों से पूछ रहे थे कि कौन क्या बनना चाहता है? कोई दरोगा कोई बीडिओ कोई और ऐसा ही कुछ. मुझे ये सब बनना उपयुक्त न लगा. मैंने कहा मैं अच्छा आदमी बनूंगा. अच्छा करने से अच्छा बना जाता है. अच्छा करने के लिए जानने की जरूरत है कि अच्छा क्या है? जवाब दिमाग लगाने से मिलेगा. तब से मैं बचपन की तुलना में लगातार अच्छा बनने की कोशिस करता रहा. लेकिन बहुत लोगों का किसी और का अच्छा होना खलने लगता है. मैं जब 28 साल की उम्र में बाप बना तो सोचने लगा अच्छा बाप कैसे बनूं, मैं तो जन्मजात आवारा हूं (इसीलिए मेरा कलम भी आवारगी में कविता लिखने लगता है). गणित का विद्यार्थी रहा हूं, अध्ययन में ऐतिहासिक पद्धति के साथ विश्लेषणात्मक, इंडक्टिव तथा डिडक्टिव पद्धतियों का भी इस्तेमाल करता हूं. मैंने 3 सूत्री फॉर्मूला तैयार किया तथा अपने बचपन के अनुभवों की दुनिया में विचरणकरण कर उनका पुष्टिकरण किया.
1. उनके साथ जनतांत्रिकता, पारदर्शिता और मित्रवत समानता का व्यवहार. (treat them democratically, transparently and at par as a friend). समानता एक गुणात्मक अवधारणा है; मात्रात्मक इकाई नहीं.
2. अतिसय परवाह; अतिशय संरक्षण; अतिशय चिंता; और अतिशय अपेक्षा से उन्हें उत्पीड़ित न करें. (Don't torture them with over caring; and over expecting). तमाम मां-बाप अज्ञान में अपनी अपूर्ण इच्छाएं बच्चों पर थोपकर उनकी नैसर्गिक सर्जनात्कता को कुंद कर देते हैं.
3. बाल अधिकारों तथा बालबुद्धिमत्ता का सम्मान करें. हम बच्चों का सोचने का हक ही हड़प लेते हैं. कभी आप भौंचक रह जाते हैं बच्चों की कई मौलिक बातों पर. उस मौलिकता को प्रोत्साहन चाहिए अनुशासन के नाम पर उनका दमन नहीं.

मेरी बेटियां बड़ी हो गयी हैं, मेरी दोस्त हैं और हम तीनों को एक दूसरे पर फक्र है. कहने का मतलब मैं अच्छा बच्चा था और लगातार और अच्छा बनने की कोशिस में जितना अच्छा बच्चा था उससे तो अच्छा ही बुड्ढा होऊंगा. संयोगों की दुर्घटना से विवि में स्थाई नोकरी मिल गयी जिसके बारे लोग कहते हैं कि देर से नौकरी मिली मैं कहता हूं सवाल उल्टा है मिल कैसे गई? वास्तविक दुनिया और आभासी दुनिया से निष्कासनों का मेरा रिकॉर्ड बहुत अच्छा है. और अकड़ कर सोचता हूं नुक्सान उन्हीं का है. हा हा. वास्तविक दुनिया के निष्कासनों की कहानी फिर कभी. फेसबुक की आभासी दुनिया में सबसे अधिक इलाहाबाद के ग्रुपों से निष्कासित हुआ हूं. प्रयाग कुटुम्ब; प्रयाग की माटी; लल्ला की चुंगी; तफरीहगाह या ऐसा ही कुछ (Pushpa Tiwari जी सही नाम बता सकती हैं);Alumni of university of Allahabad. मुझे लगता है लोग नाम के आगे पीछे क्रमशः प्रोफेसर और मिश्र देखकर जोड़ लेते हैं और प्रोफेसरी तथा मिश्रपन के कोई लक्षण न पा निकाल देते हैं.
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चुंगी पर पर परिचय 3
2. शिक्षक का कर्तव्य
सुन रही हो मणिबाला! ये परिचय की श्रृंखला तुम्हारी उत्सुकता से प्रेरित है, तुम्हें पढ़ना ही पड़ेगा. (कोई जबरदस्ती नहीं है, सफेद दाढ़ी का फायदा उठाकर अधिकार पूर्ण आग्रह). मैं एक शिक्षक हूं, शिक्षक को प्रवचन से नहीं मिशाल से पढ़ाना पड़ता है. स्टूडेंट्स को ढंग से कोर्स पढ़ाने के अलावा अंध-विश्वासों तथा धर्मांधताओं की सामाजिक चेतना के विनाश और एक आलोचनात्मक, तर्कशील, समतामूलक, समानुभूतिक, जनपक्षीय, वैज्ञानिक सामाजिक चेतना के निर्माण और विस्तार में अपने हर शब्द और कर्म से योगदान देना भी शिक्षक का कर्तव्य है. सकूं. कम्युनिस्ट पार्टियां यह काम निष्ठा से नहीं कर रही हैं और इसलिए मैं किसी कम्युनिस्ट पार्टी में नहीं हूं (“समाजवाद की समस्याएं”, समकालीन तीसरी दुनिया, जून, 2016, www.ishmishra.blogspot.com: RADICAL). ऐक्टिविज्म की ऊर्जा, मानवाधिकार संगठन, जनहस्क्षेप: फासीवादी मनसूबों के खिलाफ एक मुहिम के माध्यम से उत्सर्जित होती है. हमारी कुछ रिपोर्ट तो 100 से अधिक प्रिंट और वेब पोर्टल्स ने छापा है. तो मैं कह रहा था कि जनवादी शिक्षक होने के नाते युग चेतना से सामाजिक चेतना को मुक्त कर उसके जनवादीकरण में यथा-संभव योगदान भी मैं अपना शिक्षकीय कर्तव्य मानता हूं. मैं 2 साल पहले इसी विषय युग-चेतना और सामाजिक चेतना पर एक सेमिनार में एक पेपर पढ़ा था. पीयूसीयल ने उसे एक पुस्तिका में शामिल कर छापा है (युगचेतना बनाम जनचेतना). बचपन से शुरू करना चाहता था लेकिन मास्टर मुझ पर इतना हावी है कि आत्मस्तुति में जुट जाता है. जब तक नौकरी नहीं थी तब तक सिर्फ तेवर से शिक्षक था. दून विवि में तीन साल राजनैतिक अर्थशास्त्र की हर सेमेस्टर में मैं 2-2 क्लासें लेने जाता था. 1 घंटे की दिहाड़ी में हम लोग पूरा दिन साथ बिताते थे. 2 साल पहले पास हुए विद्यार्थियों ने मौजूदा विद्यार्थियों के साथ मिलकर यूनियन बनाकर नियुक्तियों में धांधली के विरुद्ध आंदोलन छेड़ दिया. अंततः हाई कोर्ट ने नियुक्तियों पर रोक लगा दी. वीसी को लगा कि मैंने बच्चों को बिगाड़ दिया और बुलाना बंद कर दिया. वैसे उनका सोचना बिल्कुल गलत नहीं है, लेकिन आग होगी तभी तो घी काम करेगी.

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