Monday, August 21, 2023

नेहरू की याद 15

 71वें गणतंत्र वर्ष में नेहरू की याद -- 15


15 अगस्त को मोदी जी के भाषण और फेसबुक पर ‘देशभक्तों’ द्वारा नेहरू के ‘इंसपेक्टर राज’ तथा ‘कोटा-परमिट’ के राज और नेहरू के चरित्रहनन की प्रतिक्रिया में 200-300 शब्दों के जरिए नेहरू की रक्षा में खड़ा होने की सोचा, लेकिन शब्द बढ़ते ही गए। नेहरूजी और क्या-क्या कर सकते थे और क्या-क्या करना चाहिए था या क्या-क्या नहीं किया, जैसे सवालों का कोई मतलब नहीं है। नेहरू क्रांतिकारी नहीं थे, दुर्लभ अंतःदृष्टि के एक सामाजिक जनतंत्रवादी थे जो संसदीय रास्ते से राज्य के माध्यम से सामाजिक परिवर्तन करना चाहते थे; वैज्ञानिक शिक्षा के माध्यम से अंधविशवासों और धर्मांधता से जकड़े समाज को एक प्रगतिशील समाज बनाना चाहते थे। नेहरू किन-किन कारणों से क्या-क्या नहीं कर पाए, यह एक अलग पुस्तक का विषय है। इस लेख का समापन करते हुए कहा जा सकता है कि नेहरू ने गुलामी से आजादी में संक्रमण की प्रक्रिया को एक प्रगतिशील दिशा दी; गुलामी की मार से कहारते, अविकसित मुल्क को एक औद्योगिक तथा आत्मनिर्भर मुल्क बनाया। जैसा कि ऊपर कहा गया है कि वांछनीय स्तर के औद्योगीकरण के लिए निजी पूंजीपतियों की न तो शक्ति थी न इच्छा। भेल, सेल, ओयनजीसी सरीखे नवरत्न जिसे बेचकर मौजूदा सरकारें देश की ‘आय’ बढ़ाने की जुगत में लगी हैं, नेहरू शासन की देन हैं। भारत गुटनिरपेक्ष आंदोलन के नेता के रूप में महाशक्तियों के वर्चस्व को चुनौती देने की शक्ति नेहरू के ही नेतृत्व में अर्जित किया जिसे हाल की सरकारें विश्व बैंक के पास गिरवी रखने की तिकड़मों में लगी हैं। देश के लिए निर्भीक, चिंतनशील, जिम्मेदार नागरिक बनाने और नए-नए ज्ञान के अनवेषण के लिए, स्वायत्त विश्वविद्यालयों की अवधारणा नेहरू के ही तार्किक दिमाग की उपज है, जिसे मौजूदा सरकार नेस्त-नाबूद करने पर तुली है। इस वाक्य के साथ, फासीवाद की तरफ अग्रसर, भारतीय गणतंत्र के इकहत्तरे वर्ष में, प्रमुख स्वतंत्रता सेनानी, भारत के पहले प्रधानमंत्री को श्रद्धांजलि अर्पित करता हूं कि जवाहरलाल नेहरू देश के एक मात्र दूरदर्शी प्रधानमंत्री हुए हैं जिन्होने जनतांत्रिक और सामाजिक न्याय की अवधारणाओं को संस्थागत रास्ते पर अग्रसरकिया। आज तब ये संस्थानों और मूल्यों पर फासीवादी खतरे के बादल मड़रा रहे हों, तो नेहरूजी की याद लाजमी है।

20.08.2017

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