जिस का भी अस्तित्व है, उसका अंत निश्चित है और पूंजीवाद अपवाद नहीं है। युगकारी परिवर्तनों का टाइमटोवल नहीं तय किया जा सकता। रूस में फरवरी, 1917 में पूंजीवादी जनतांत्रिक क्रांति के समय किसी ने कल्पना भी न की थी कि आने वाले अक्टूबर के 10 दिन दुनिया हिला देंगे। 1920 में अंग्रेजों को जरा भी एहसास होता कि अगले 20-25 सालों में उन्हें हिंदुस्तान छोड़ना होगा तो रायसीना हिल पर आलीशान महल की लुटियन्स की दिल्ली परियोजना शायद ही शुरू करते। 50 साल पहले हमारे पूर्वजों को पता था क्या कि दलित प्रज्ञा और दावेदारी का आलम ऐसा हो जाएगा कि उनके वंशजों को अपनी असफलता आरक्षण की रुदाली के पीछे छिपानी पड़ेगी। पूंजीवाद लगभग 500 साल पहले शुरू हुआ और अभी भी दुनिया पर वर्चस्व नहीं स्थापित कर सका है। सामंतवाद से पूंजीवाद का संक्रमण एक वर्ग समाज से दूसरे वर्ग समाज में संक्रमण है, पूंजीवाद से समाजवाद में संक्रमण गुणात्मक रूप से भिन्न एक वर्ग समाज से एक वर्गहीन समाज का संक्रमण होगा।
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