Thursday, June 9, 2022

मार्क्सवाद 266 (जातिवाद)

 DS Mani Tripathi & Yadav Shambhu आप लोग निजी आरोप-प्रत्यारोप से बचें, इस औपचारिक जनतंत्र को हम बुर्जुआ जनतंत्र कहते हैं जोकि मौजूदा स्थिति में संख्या तंत्र बन चुका है तथा सभी चुनावी दल चुनावक्षेत्र की जातीय संरचना के अनुसार फम्मीदवार खड़ा करते हैं। यूरोप में नवजागरण और प्रबोधन क्रांतियों (बुर्जुआ जनतांत्रिक क्रांति) ने जन्म आधारित समाज विभाजन समाप्त कर दिया था। इसीलिए मार्क्स-एंगेल्स ने 1848 में कम्युनिस्ट मैनिफेस्टों में लिखा कि पूंजीवाद ने सामाजिक विभाजन को सरल कर दिया है और समाज को पूंजीपति वर्ग और सर्वहहारा के परस्पर विरोधी खेमों में बांट दिया है। भारत में सामाजिक-आध्यात्मिक समानता के संदेश लिए कबीर के साथ शुरू नवजागरण अपनी तार्किक परिणति तक पहुंच नहीं सका तथा औपनिवेशिक हस्तक्षेप के चलते संभावित प्रबोधन (बुर्जुआ डेमोक्रेटिक) क्रांति शुरू नहीं हो सकी। 1853 में मार्क्स जब भारत पर लिखना शुरू किए तो असमंजस में पड़ गए और यहां कि स्थिति उनके निर्धारित उत्पादन पद्धतियों (modes of production) के ढांचे में फिट न हो सकी तो यहां के लिए उन्होंने अलग उत्पादन पद्धति का प्रतिपादन किय -- एसियाटिक उत्पादन पद्धति (Asiatic mode of Production)। उस समय मार्क्स को लगा था कि जिस तरह औद्योगिक उदारवादी पूंजीवाद सामंतवाद को ध्वस्त कर उसके खंडहरों पर खड़ा हुआ उसी तरह औपनिवेशिक पूंजीवाद भारत में पूंजीवाद के विकास के लिए एसियाटिक मोड को ध्वस्त करेगा। लेकिन औपनिवेशिक पूंजीवाद की मंशा भारत में पूंजीवाद का विकास करने की बजाय यूरोप में पूंजीवाद के विकास के लिए यहां के संसाधनों की लूट था और उसने एसियाटिक (वर्णाश्रमी) मोड को तोड़ने की बजाय इसका इस्तेमाल लूट के लिए किया। आजादी के बाद की चुनावी संख्यातंत्र की परिघटनाओं ने जन्म आधारित विभाजन (जातिवाद) को तोड़ने की बजाय उसे और मजबूत किया। जन्म में के आधार पर व्यक्तित्व का मूल्यांकन ब्राह्मणवाद (जातिवाद) का मूलमंत्र है। जवाबी जातिवाद (नवब्राह्मणवाद) भी वही करता है। भारत में अपूर्ण बुर्जुआ डेमोक्रेटिक (सामाजिक न्याय की) क्रांति की जिम्मेदारी भी कम्युनिस्ट आंदोलन की थी जो इसे समझ न सका ओऔर लगा वर्ग संघर्ष से जातिवाद अपने आप खत्म हो जाएगा। लेकिन ब्राह्मणवाद और नवब्राह्मणवाद वर्ग संघर्ष के लिए आवश्यक वर्गचेतना के प्रसार (सामाजिक चेतना के जनवादीकरण) के रास्ते के सबसे बड़े गतिरोधक बने हुए हैं। इसीलिए आज जरूरत सामाजिक न्याय और आर्थिक न्याय के संघर्षों की एकता की है जिसका प्रतीकात्मक प्रतिनिधित्व जय भीम-लाल सलाम नारा करता है।

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