Wednesday, June 1, 2022

ईश्वर विमर्श 105 (नास्तिकता)

 हर देश में ईश निंदा के विरुद्ध इतने कठोर कानून हैं और उससे भी अधिक धर्मोंमादी भीड़ के प्रकोप का इतना भय है कि नास्तिक बेचारा अंधभक्ति के एजेंडे पर खासकर ईश्वर के बारे में बहुत संभलकर प्रतिक्रिया देता है। किसी के विरुद्ध लोगों की धार्मिक भावनाओं को भड़काना बहुत आसान होता है। प्राचीन यूनान में एथेंस की न्यायिक सभा में जब (वर्ष 399 ईशापूर्व) सुकरात पर नास्तिकता फैलाने का मनगढ़ंत मुकदमा चल रहा था तो बाहर धर्मोंमादी भीड़ सुकरात की मौत की मांग के नारे लगा रही थी। सुकरात को तो मार डाला गया लेकिन साथ ही शुरू हो गया गौरवशाली यूनानी दार्शनिक-शैक्षणिक परंपराओं का पतन। उसी तरह 1600 में रोमन चर्च में पादरियों द्वारा वैज्ञानिक, दार्शनिक, लेखक, ब्रूनो पर 7 साल मुकदमा चलाने के बाद जब उन्हें चौराहे पर जिंदा जलाने की सजा को अंजाम दिया जा रहा था तो धर्मोंमादी भीड़ उल्लास में जश्न मनाते हुए तमाशा देख रही थी। कलबुर्गी, गौरी लंकेश, पंसारे, दाभोलकर या पाकिस्तान में मशाल खां की हत्याओं पर भी धर्मोंमादी मानसिकता के लोगों ने जश्न मनाया। धर्मोंमादी मानसिकता बहुत ही अमानवीय, क्रूर और बर्बर होती है, इसलिए नास्तिकों को बहुत फूंक फूंक कर चलना पड़ता है।

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