उर्दू सीखना बहुत आसान है, उर्दू के किसी भी जानकार से लिपि सीख लीजिए जो कि बहुत आसान है और अक्षरों को जोड़ने और न जुड़ने के कुछ आसान नियम हैं। बाकी शब्दावली वही है जो हिंदी की। मैंने 1977 में जेएनयू के एक इलाहाबादी मित्र (दिवंगत प्रोफेसर अली जावेद) से सीखा था, लिखने और पढ़ने का कभी अभ्यास नहीं रहा, फिर भी आज भी लिख लेता हूं और दिमाग पर जोर देकर थोड़ा-बहुत पढ़ लेता हूं। मैंने उर्दू (1977) और बांगला (1970) लिपियां उनके सुलेखीय सौंदर्य (calligraphic aesthetics) के लिए सीखा था। बांगला भी लिखने पढ़ने का कभीअभ्यास नहीं रहा, फिर भी कुछ संयुक्ताक्षरों को छोड़कर लिख-पढ़ सकता हूं। भाषा (उर्दू) का सांप्रदायिककरण भी देश के बंटवारे की त्रासदियों में है।
पाली प्राचीन जन भाषा थी और ज्यादातर प्राचीन बौद्ध साहित्य पाली में ही है। उर्दू अरबी, फारसी और तुर्की के बहुत से शब्दों को समाहित कर दिल्ली के इर्द-गिर्द क्षेत्र में बोले जाने वाली भाषा की बुनियाद पर 12वीं शताब्दी में विकसित होना शुरू हुई। हिंदी (खड़ी बोली) और उर्दू बहनें कही जाती हैं क्योंकि दोनों का विकास एक ही व्याकरण और शब्द-संरचना (syntax) की बुनियाद पर साथ-साथ शुरू हुआ। उर्दू में साहित्य लेखन 14वी-15वीं शताब्दी में शुरू हुआ जिसमें बहुत से मशहूर सिख और हिंदू साहित्यकार हैं। समाज में सांप्रदायिकता के प्रसार के साथ भाषा का भी सांप्रदायिककरण हो गया और उर्दू को मुसलमानों की भाषा बना दिया गया।
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