Monday, November 8, 2021

लल्ला पुराण 314 (बाभन से इंसान)

 एक सज्जन ने जन्म की जीववैज्ञानिक दुर्घटना की अस्मिता से ऊपर उठकर विवेकसम्मत अस्मिता बनाने के मुहावरे 'बाभन से इंसान बनने' पर तंज करने के लिए एक कहानी गढ़ कर बाभन से इंसान बन चुके लोगों पर तंज कसने का प्रयास किया है, उस पर:


जो बाभन से इंसान नहीं बनना चाहता वह अपनी अकर्णण्यता और बौद्धिक जड़ता का औचित्य साबित करने के लिए ऐसी ही कहानियां गढ़ते हैं। अरे भाई, जिसे इंसान नहीं बनना है, वह न बने वह बना रहे बाभन, ठाकुर. अहिर या हिंदू-मुसलमान। जो विवेक के इस्तेमाल और अदम्य साहस के अनवरत आत्मसंघर्ष के परिणाम स्लरूप जन्मगत दुराग्रहों से मुक्ति पाकर बाभन (अहिर, भुंइहार, कुर्मी, ......., या हिंदू-मुसलमान) से इंसान बन चुके हैं, उनपर क्यों वापस जातीय जहालत क्यों थोपना चाहते हैं?

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