कौन कह रहा है कि पूर्वी उप्र बिहार के किसान किसान आंदोलन के समर्थक नहीं हैं? देश भर के किसानों की ही तरह यहा के किसानों ने दिल्ली सीमा पर चल रहे किसान आंदोलन के समर्थन में सभाएं की। बिहार में किसानों ने कई किमी लंबी मानव श्रृखला बनाया था। गोंडा, बलरामपुर, बलिया और सुल्तानपुर में किसान महापंचायतें हुईं। देश भर से किसान संगठनों के नेताओं ने दिल्ली सीमा पर किसान धरनों में शिरकत की। लखीमपुर में कई आंदोलनकारी किसानों को केंद्रीय गृहराज्य मंत्री अजय मिश्र 'टेनी' के बेटे की गाडियों के काफिले से कुचलकर मार कर शहीद कर दिया गया। काले कृषि कानूनों के खात्में की घोषणा से किसान आंदोलन अभी खत्म नहीं हुआ है, किसान अजय मिश्र की बर्खास्तगी, एमएसपी की गारंटी और बिजली बिल बढ़ोत्तरी के कानून की वापसी तथा शहीद किसानों के परिजनों के मुआवजे की मांगों के साथ अभी डटे हुए हैं।
कृषि के कॉरपोरेटीकरण के मकसद से साम्राज्यवादी पूंजी के निर्देश पर बने कृषि कानूनों के विरुद्ध किसान आंदोलित थे, सरकार कानून वापस न लेने पर अड़ी हुुई थी, मृदंग मीडिया और भक्त आंदोलन को बदनाम करने के लिए दुष्प्रचार अभियान चलाए हुए थे। 700 आंदोलनकारियों ने शहादत दी। उप्र चुनाव सिर पर है। आंदोलनकारी न थके, न ही झुकने या हार मानने को तैयार हैं न हार मानने को। अंततः जनता के दबाव में सरकार को झुकना और माफी मानना पड़ा । 700 शहीद आंदेोलनकारियों के परिजनों से कौन माफी मांगेगा। उम्मीद है सरकार एमएसपी की गारंटी और बिजली बिल संशोधन कानून की वापसीका मांग भी मान लेगी। औतिहासिक किसान आंदेोलन जिंदाबाद।
No comments:
Post a Comment