जब भी जन्म आधारित भेदभाव पर कुछ लिखता हूं तो ब्राह्मणवादी और नवब्राह्मणवादी दोनों तरह के जातिवादी मेरे नाम के 'मिश्र' पुछल्ले के पीछे पड़ जाते हैं। जैसे कि मिश्राओं को जातिवाद से ऊपर उठकर वैज्ञानिक सोच विकसित करने और विवेकशील इंसान बनने का अधिकार ही न हो!
एक मित्र ने मेरी एक पोस्ट शेयर किया जिसमें लिखा था कि जिनके पास गर्व करने की अपनी कोई उपलब्धि न हो वह अपने जन्म की जीववैज्ञानिक दुर्घटना की अस्मिता पर ही गर्व कर सकता है। इस पर एक नवब्राह्मणवादी ने उनपर एक 'मिश्र' की चाल में फंसने का आरोप लगाया। जाति के विनाश की अंबेडकर की शिक्षा पढ़ने की मेरी सलाह पर उन्होंने कहा कि उनकी बजाय मुझे अपनी जाति वालों को अंबेडकर पढ़ाना चाहिए। दोनों कमेंट एक साथ पोस्ट कर रहा हूं।
जन्म केआधार पर व्यक्तित्व का मूल्यांकन ब्राह्मणवाद का मूलमंत्र है, ऐसा करने वाले अब्राह्मण का नवब्राह्मणवाद ब्राह्मणवाद का पूरक होता है और इंसानियत के लिए उतना ही खतरनाक। बाभन से इंसान बनना तो जरूरी होता ही है लेकिन अहिर या कुर्मी से इंसान बनना भी जरूरी होता है। बाभन से इंसान बनना जन्म की जीवनवैज्ञानिकदुर्घटना से मिली अस्मिता से ऊपर उठकर विवेकसम्मत अस्मिता के निर्माण का मुहावरा है। जाति के विनाश के बिना क्रांति नहीं हो सकती औरक्रांति के बिना जाति का विनाश नहीं। अंबेडकर की किताब का शीर्षक जाति का विनाश है, प्रतिस्पर्धी जातिवाद नहीं। ब्राह्मणवाद और नवब्राह्मणवाद दोनों ही समतामूलक बदलाव के लिए अनिवार्य सामाजिक चेतना के जनवादीकरण के रास्ते के विशालकाय गतिरोधक हैं।
इस पर ( नाम से मिश्र न हटाने पर) मैं पिछले 50 सालों से हर किस्म के ब्राह्मणवादियों और नवब्राह्मणवादियों के जहालती सवालों के के जवाब में बहुत लिख चुका हूं। विचारों की बजाय जन्म के आधार पर व्यक्तित्व का मूल्यांकन ब्राह्मणवाद और नवब्राह्मणवाद का साझा मूल मंत्र है। मैं तो नास्तिक हूं। मेरा तो न कोई धर्म है न जाति लेकिन आप जैसे नवब्राह्मणवादी बहुजन हित के लिए उतने ही खतरनाक हैं जितने सर्वहारा हित के लिए लंपट सर्वहारा। अस्मिता राजनीति की एक सीमा होती है, उससे आगे वह मायावती की तरह सत्ता के लिए आरएसएस की गोद में बैठकर मोदी के साथ गुजरात में जनसंहार की हिमायत करती है और परशुराम की मूर्ति लगवाने में अखिलेश से प्रतिस्पर्धा या नीतीश की तरह अमितशाह की चरणवंदना या मुलायम की तरह प्रकारांतर से मोदी की मिलीभगत से मुजफ्फरनगर का आयोजन। कॉरपोरेट दलाली में ब्राह्मणवादियों और नवब्राह्मणवादियों में कोई फर्क नहीं है। ब्राह्मणवादियों से अधिक आप जैसे नवब्राह्मणवादियों को अंबेडकर पढ़ाने की जरूरत है जो अपने तुच्छ स्वार्थों के लिए उस महान चिंतक को बदनाम करते हैं। अंबेडकर जाति का विनाश चाहते थे प्रतिस्पर्धी जातिवाद नहीं। क्रांति के बिना जाति का विनाश नहीं और जाति के विनाश के बिना क्राति नहीं। ब्राह्मणवादी और नवब्राह्मणवादी, हर तरह के जातिवाद का एक जवाब -- इंकिलाब जिंदाबाद।
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