बचपन में खेत में मजदूरों को नाश्ता (खमिटाव) लेकर जाता था तो खाने के साथ सर्बत या मट्ठे का बर्तन उन्हें पकड़ाकर खुद हल जोतने लगता। 2-2 सामाजिक मान्यताएं (रूढ़ियां) टूटतीं। दलित जाति क मजदूर बर्तन छू देते और ब्राह्मण बालक हल जोतता। उस समय तक वर्णाश्रमी व्यवस्था का वेद-हल द्वैध ( Veda-Plough dichotomy) लगभग पूरी तरह प्रचलन में था। मजदूर दोनो बातों की बाबा से शिकायत करने की धमकी देते थे। वे मुझसे इतना प्यार करते थे कि मैं उनकी धमकियों को गंभीरता से नहीं लेता था।
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment