औरंगजेब के जमाने में धर्मनिरपेक्षता और सांप्रदायिकता की अवधारणाएं नहीं थीं, दोनों ही आधुनिक अवधारणाएं हैं। विचारधारा के रूप में सांप्रदायिकता का निर्माण 1857 की क्रांति से आक्रांत औपनिवेशिक शासकों ने हिंदू और मुसलमान समुदायों के अपने दलालों के माध्यम से बांटो-राज करो तथा राष्ट्रीय आंदोलन को कमजोर करने के लिए किया। हिंदू महा सभा-आरएसएस तथा मुस्लिमलीग-जमाते-इस्लामी के रूप में संगठित उसके एजेंट मुल्क में हिंसक विषवमन करते रहे जिसके परिणामस्वरूप मुल्क का बंटवारा हुआ जिसके घाव नासूर बन गए हैं। हिंदुत्व ब्राह्मणवाद की ही, फासीवादी राजनैतिक अभिव्यक्ति है। सांप्रदायिकता धार्मिक नहीं धर्मोंमादी लामबंदी की राजनैतिक विचारधारा है।
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