मैंने इलाहाबाद विवि समेत विभिन्न शिक्षण संस्थानों में 14 साल इंटरविव दिया। मेरी समस्या नास्तिकता की थी, जब गॉडै नहीं है तो गॉडफादर कहां से होता? नौकरी की मेरी दूसरी कोई प्रथमिकता थी नहीं स्टॉपगैप व्यवस्था के रूप में कुछ दिन पत्रकारिता और बाकी कलम की मजदूरी से काम चलाता रहा लेकिन सौभाग्य से संयोगों की टकराहट से देर से ही सही नौकरी मिल ही गयी। पढ़ाने का सुख जितना भी मिला, सौभाग्य मानता हूं।
किसी ने कहा कि इंटरविव से शिक्षक बने लोगों का लिखित परीक्षा से शिक्षक बने लोगों पर उंगली उठाने का अधिकार नहीं है। उस पर --
सही कह रहे हैं, इंटरविव से नियुक्ति में मठाधीशी की बहुत भूमिका होती है तथा ज्यादातर नौकरियां सेटिंग से मिलती हैं, अपवाद स्वरूप कुछ संयोगों के संयोगात टकराहट से। मुझसे कोई कहता था कि तुम्हें देर नौकरी मिली तो मैं कहता कि सवाल उल्टा है, मिल कैसे गयी? लेकिन केवल इंटरविव से या लिखित परीक्षा से शिक्षक बने शिक्षकों पर उंगली उठाने का हक हर किसीनको है यदि वे शिक्षकीय दायित्व और मर्यादा के साथ विश्वासघात करें। आपकेतर्क से तो आईएस-पीसीएस अधिकारियों पर उंगली उठाने का किसी को कोई हक नहीं है चाहे वे कितने भी बड़े भ्रष्ट और चोर हों। हमारे परिचित सैकड़ों आईएएस-आईपीएस-पीसीएस अधिकारियों में अपवाद स्वरूप ईमानदार अधिकारियों को उंगलियों पर गिना जा सकता है। सवाल यह है कि कतनों की प्रथमिकता शिक्षक बनने की होती है? अन्य प्रतिस्पर्धी परीक्षाओं में खारिज लोगों को शिक्षक की परीक्षा में कोचिंग के नोट रटने का कुछ फायदा हो ही जाता है क्योंकि टिक मार्का परीक्षाओं से किसी के शिक्षकीय मिजाज या प्रतिभा का पता नहीं चलता। शिक्षक होना सौभाग्य की बात है लेकिन दुर्भाग्य से ज्यादातर शिक्षक अभागे होते हैं शिक्षक होने का महत्व नहीं समझते महज नौकरी करते हैं और 3-5 करके समाज का भविष्य तबाह करते हैं। यदि आधे शिक्षक भी शिक्षक होने का महत्व समझ लें तो क्रांति का पथ वैसे ही प्रशस्त हो जाए। इसलिए सभी शिक्षकों से आग्रह है कि वे हर तरह के पूर्वाग्रह-दुराग्रह से मुक्त होकर अच्छे शिक्षक बनें। अच्छा इंसान बनना अच्छे शिक्षक की अनिवार्य शर्त है लेकिन पर्याप्त नहीं, विषय का ज्ञान अर्जित करने का श्रम करना भी आवश्यक है।
प्राथमिकता की बात हमने केवल इसलिए किया कि जो प्राथमिकता का व्यवसाय न मिलने पर मजबूरन किसी व्यवसाय में आता है उसकी कर्तव्यनिष्ठा पर सवाल उठता ही है। मैं भी अपने मित्रों से यही कहता था कि जिस भी किसी तरह वे शिक्षक बन गए, उन्हें शिक्षक होने का महत्व समझ, कर्तव्यनिष्ठा के साथ शिक्षकीय मर्यादा का पालन करना चाहिए। जो भी लोग किसी खास व्यक्ति की कर्तव्यविमुखता के कारण पूरे व्यवसाय पर उंगली उठाते हैं, वे गलत करते हैं तथा उनका कृत्य निंदनीय है। पूंजीवाद में श्रमशक्ति वाले श्रम के साधनों से मुक्त होते हैं इसीलिए वे आजीविका के लिए श्रमशक्ति बेचने (alienated labour करने) को अभिशप्त होते हैं। मुझे लगा शिक्षक की नौकरी में एलीनेसन को खत्म तो नहीं किया जा सकता लेकिन कम किया जा सकता है, इसीलिए अपने लिए इसे ही उपयुक्त और वाछनीय समझा। आपने पूछा यदि न मिलती तो क्या करता? जब नौकरी नहीं थी तो कलम की मजदूरी से आजीविका कमाते हुए, लेखन से शिक्षक का काम कर रहा था, आगे भी वही करता। फेस बुक पर भी शिक्षक की ही भूमिका निभाने के लिए समय निवेश करता हूं। भाग्यशाली हैं कि शिक्षक की नौकरी कर रहे हैं, शिक्षक होने का महत्व समझिए और अच्छे शिक्षक के रूप में अपने विद्यार्थियों के दिल-ओ-दिमाग में स्थाई सुखज स्मृति के रूप में दर्ज रहेंगे।
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