वास्तविकता तो यही है कि पुराणकाल में स्त्री पुरस्कार की वस्तु होती थी और यदि एक मर्द द्वारा बदले की भावना से एक स्त्री का अपहरण करता है तो दूसरा मर्द उसे अपवित्र मानकर उसकी अग्निपरीक्षा लेता है, इसके बावजूद गर्भवती कर कोई बहाना बनाकर उसे घर से निकाल देता है। ऐसा तो एक आदर्श समाज में ही होता है, है न? वह मर्द बदले की भावना से जिस स्त्री का अपहरण करता है उसका दोष यह था कि वह उस मर्द की प्रतियोगिता में जीती पत्नी थी जिसने उसकी बहन का अंग-भंग कर दिया था क्योंकि उसने उससे प्रेमनिवेदन का प्रस्ताव करने की जुर्रत की थी। बाकी जब तक स्त्रियां अपना इतिहास खुद नहीं लिखतीं तब तक इतिहास स्त्री उत्पीड़न का महिमामंडन ही होगा। ऊपर के कमेंट की भाषा देखिए, लगता है कि किसी सड़क छाप लंपट की भाषा है, क्या इवि का स्तर इतना गिर गया है?
स्त्रीद्वेषी मर्दवादी कुंठा ऐसी ही अभिव्यक्ति पाती है। वामपंथ इसमे कहां से आ गया बजरंगी फिरकापरस्तों को जब तर्क नहीं मिलता तो उनपर वामपंथ का बेबात दौरा पड़ जाता है। गुंडे-मवालियों की शैली भभाना, पपराना जैसी सड़क छाप भाषा भी उसी मर्दवादी कुंठा का द्योतक है। एक अफ्रीकी कहावत है कि जब तक शेरों के अपने इतिहासकार नहीं होंगे, इतिहास शिकारियों का ही महिमामंडन करेगा। जब तक स्त्रियां इतिहास लिखना नहीं शुरू करेंगी इतिहास मर्दवाद का महिमामंडन ही बना रहेगा। स्व के स्वार्थबोध से मुक्त होकर स्व के परमार्थबोध को तरजीह दें तो मर्द होकर भी स्त्री की पीड़ा समझ सकेंगे।
बात व्यक्तिगत की नहीं है, आपने एक फतवानुमा वक्तव्य दिया है कि वामपंथी मानसिक बीमार होता है तो आपको बताना चाहिए कि वामपंथ क्या होता है और उसे क्या मानसिक बीमारी है? या यह भजन गाने की ड्यूटी लगी है। शिक्षक होने के नाते हमने तो अंधभक्तों को विवेकशील इंसान बनाने की अपनी ड्यूटी लगा रखी है। सरनेम और जन्म से मैं ब्राह्मण हूं, सनातनी के बारे में कुछ नहीं कह सकता क्योंकि जानता नहीं कि सनातन क्या होता है? आपको मालुम हो को प्रकाश डालिए। लंबे आत्मसंघर्ष से बाभन से इंसान बन चुका हूं। सद्बुद्धि की शुभकामनाएं।
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