सरकार राज्यपाल की ही तरह सीएजी की नियुक्ति भी स्वामिभक्ति के आधार पर करती है लेकिन उसमें कुछ संविधान के प्रति निष्टावान निकल जाते हैं और कुछ सरकार के अंतिम दिनों में परिवर्तन की हवा देखकर आगामी संभावित सरकार के हाथों बिक कर संभावना को घटना में बदलने में मददगार होते हैं। जैसे मनमोहन सरकार के अंतिम दिनों में सीएजी ने 2 जी स्पेक्ट्रम के आबंटन में सैकड़ों करोड़ के घाटे की रिपोर्ट दी थी जो सरकार गिरने के बाद अदालत में बेबुनियाद पायी गयी। नव चयनित सीएजी, मुर्मू शायद वही है जिसे मनोज सिन्हा के पहले जम्मू-कश्मीर का राज्यपाल बनाया गया था। सीएजी के रूप में " अच्छा " काम किया तो सेवानिवृत्ति के बाद मनमोहन सरकार पर कोर्ट द्वारा निरस्त कर दिए गए भ्रष्टाचार के आरोप लगाने वाले तत्कालीन सीएजी विनोद राय की तरह फायदे के पद पर नियुक्ति हो जाएगी। यूपीएससी की तैयारी करते समय सभी उम्मीदवार देश की सेवा करने के शगूफे छोड़ते हैं, चयनित होने के बाद ज्यादातर अपनी और अपने राजनैतिक आकाओं की सेवा करते हैं। ऐसे अभागे अधिकारी आजीवन ईमानदारी की ताकत की अनुभूति से वंचित रह जाते हैं।
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