Wednesday, August 26, 2020

मार्क्सवाद 226 (द्वंद्वात्मक भौतिकवाद)

 ऐतिहासिक रूप से द्रव्य विचार के बिना भी रहा है और उसी से विचार की उत्पत्ति हुई। न्यूटन के गुरुत्वाकर्षण नियम से सेब गिरना नहीं शुरू हुए, वे पहले से गिरते ते, उन्हें देखकर न्यूटन के दिमाग में गिरने के कारण जानने का विचार आया। लेकिन सत्य की समग्रता दोनों के द्वंद्वात्मक मेल से बनती है। सेब का गिरनी संपूर्ण सत्य नहीं है और सेब न गिरते तो न्यूटन का गुरुत्वाकर्षण नियम अस्तित्व में न आता। सवाल पहले मार्क्स या हेगेल का नहीं क्योंकि मार्क्स हेगेल और फॉयरबाक दोनों का संज्ञान लेते हैं और दोनों को ्र्धसत्यों को जोड़कर सत्य की समग्रता रचते हैं। वैसे सवाल होना चाहिए पहले हेगेल या फॉरबाक। ( उपनिषद या चार्वाक जिनका द्वंद्वात्मक मेल बुद्ध में दिखता है।) हेगेल के वास्तविक पूर्ववर्ती प्लेटो हैं।


द्वंद्वात्मक भौतिकवाद यांत्रिक भौतिरवाद को चुनौती देता है तथा तब्दील करता है। चेतना भौतिक परिस्थितियों का परिणाम है और बदली चेतना बदली परिस्थितियों का लेकिन परिस्थितियां अपने आप नहीं बदलती बल्कि मनुष्य का चैतन्य प्रयास उसे बदलता है। अतः सत्य द्वंद्वात्मक है तथा भौतिकता उसका अंश है समग्रता नहीं, समग्रता चेतना के द्वंद्वात्मक मिलन से बनती है।

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