Thursday, August 20, 2020

फुटनोट 240 (कलान चौराहा)

 हाईस्कूल और इंटर में पढ़ते हुए ट्रेन पकड़ने बिलवाई स्टेसन के रास्ते में कलान चैराहे पर चाय पीते जाते थे। तब उसे बिलवाई चौराहा ही कहा जाता था। बिलवाई बाजार वहां से एक-डेढ़ किमी उत्तर है और बिलवाई स्टेसन डेढ़-दो किमी पश्चिम।ग्राम-समाज की जमीन में कलान के एक ठाकुर ने चंदे से एक स्कूल बनवाया थो जो अब पीजी कॉलेज बन चुका है।स्कूल के हेड मास्टर हमारे गांव के बगल के गांव के राम सूरत सिंह थे, वे वहां से छोड़कर अपने गांव की ग्रामसमाज की जमीन पर चंदा करके स्कूल बनवाया, तब हम इलाहाबाद पढ़ते थे, स्टेसन जाते समय कभी कभी गणित का एक कलास लेते जाते थे। वह स्कूल भी अब डिग्री कॉलेज बन गया है। संस्थापक राम सूरत सिंह तो अब रहे नहीं, उनके पिताजी के परोक्ष नाम पर कॉलेज अभी भी है। उनके पिताजी का नाम राम सेवक सिंह था, स्कूल का नाम उन्होंने जनसेवक विद्यालय रखा था।

1 comment:

  1. कहानी बहुत त्रासद है। छोटे बाबू महत्वाकांक्षी नहीं थे। हाई स्कूल-इंटर में जौनपुर में पढ़ते थे तो अक्सर बिना टिकट बनारस घूमने चलले जाते थे। उस समय छात्र बिना टिकट रेल यात्रा करते थे। अस्सी से रामनगर स्टीमर चलते थे। स्टीमर के अनभव के लिए रामनगर जाता था और घाट से ही वापसी में उसी स्टीमर से लौट आता था। वैसे इस भूमिका की कोई जरूरत नहीं थी। वापस अस्सी आकर लॉटरी टिकट विक्रेता के वाक्जाल में फंस कर एक रूपये का एक लाख की लॉटरी का टिकट खरीद लिया। वापसी में ट्रेन में योजना बनानाे लगा तो पैसे कम पड़ने लगे। जौनपुर पहुंचते-पहुंते टिकट खो गया, जिसका कोई अफशोस नहीं हुआ।

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