आजादी के आठवें साल (1955)में आजमगढ़ जिले के एक शैक्षणिक और सांस्कृतिक रूप से पिछड़े इलाके में, एक कट्टर कर्मकांडी ब्राह्मम परिवार में मेरा जन्म हुआ। आर्थिक व्यवस्था तथा सास्कृतिक परिवेश मध्ययुगीनता और आधुनिकता के संक्रमणकाल से गुजर रही थी। वर्णाश्रम व्यवस्था में मैकाले की शिक्षा व्यवस्था के चलते शिक्षा की सैद्धांतिक रूप से सार्वभौमिक सुलभता तथा छुआछूत के विरुद्ध संवैधानिक प्रावधानों के चलते छोटी-मोटी दरारें पड़ना शुरू हो गयी थीं। खेती-बाड़ी, पशुपालन एवं अन्य काम हलवाहों-चरवाहा एवं मजदूर के परिश्रम से होता था। कम उम्र में ही बड़े भाई के साथ गाव के प्राइमरी स्कूल जाने लगा तथा गदहिया गोल (प्री-प्राइमरी) में 3-4 महीने ही पढ़ा कि पंडित जी ने मेरे अंकगणित के पता नहीं किस ज्ञान से प्रभावित होकर मुझे कक्षा -1 में प्रोमोट कर दिया। कक्षा 4 में डिप्टी साहब मुआयना करने आए और अंकगणित के किसी मौखिक सवाल के जवाब में कक्षा 5 में प्रोमोट कर दिया। 1964 में 9 साल में प्राइमरी पास किया और 8 किमी दूर मिडिल स्कूल से आठवीं पास किया तो पैदल की दूरी पर हाई स्कूल नहीं था और साइकिल पर पांव नहीं पहुंचता था। प्रतिकूलता में अवसर (ब्लेसिंग इन डिस्गाइज)। हाई स्कूल की पढ़ाई करने नजदीकी शहर जौनपुर चला गया और 1972 में जब इलाहाबाद विवि में बीएस्सी में दाखिला लिया। मैं विवि पढ़ने जाने वाला अपने गांव का पहला लड़का था। 1972 में इंटर की परीक्षा देकर घर गया तो मेरे विवाह का निमंत्रण कार्ड छप चुका था और मेरा विद्रोह का प्रयास नाकाम रहा। बाकी परिचय अगली किश्त में।
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