Monday, July 6, 2020

इतिहास और मिथक

Satyendra Kumar Singh पुराण इतिहास नहीं, इतिहास का मिथकीकृत रूप होता है, उससे इतिहास समझने के लिए उसका अमिथकीकरण करना होता है। स्कंधपुराण का अनुमानित काल पहली शताब्दी ईशापूर्व के आसपास है तथा लगभग इसी समय मौजूदा-इज्रायल-फिलिस्तीन पर रोम के अतिक्रमण के फलस्वरूप वहां रहने वालों का तमाम दिशाओं में पलायन हुआ। संभव है उनमें से कुछ कोंकण तट पर पहुंचे हों। चितपावनों के कई सरनाम फिलिस्तीन के भौगोलिक नामों से मिलते-जुलते बताए जाते हैं। बाकी अपवाहजन्य इतिहासबोध वाले, कुंद दिमाग अंधभक्त बेचारे दिन रात कम्युनिस्ट के भूत से आक्रांत हो अभुआते रहते हैं। इन्हें हर जगह हिंदू को बांटने की जाजिश नजर आने लगती है जबकि उस समय हिंदू शब्द था ही जिसका ईजादव अरबोंने सिंधु के आसपास के इलाकों की भौगोलिक अस्मिता के लिए किया। कालांतर में यह वर्ण्रश्रमी व्यवस्था के तहत ऊंच-नीच जातियों में बंटे वर्णाश्रम समाज की धार्मिक अस्मिता बन गया। ब्राह्मण जाति पहले से ही गोत्र, मूल, कर्मकांडी श्रेणीक्रम आदि तमाम आधारों पर देशस्थ, चितपावन, मैथिल, कान्यकुब्ज, सरयूपारीण आदि अन्यान्य कोटियों में बंटी है। सरयूपारियों में कई श्रेणियां हैं। मेरी पत्नी परिहास में मुझे बार बार याद दिलाती थी कि हमलोग उनसे नीच ब्राह्मण हैं। हम बांटना नहीं जोड़ना चाहते हैं ब्राह्मणवाद (जातिवाद) को बांटना नहीं उसका विनाश चाहते हैं। देश-दुनिया में विलुप्तप्राय कम्युविस्ट शब्द। चितपावनों के यहूदी मूल के बारे में स्कंधपुराण के अलावा यहूदी मिथकों समेत कुछ अन्य मिथक भी है।
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