मीडिया घरानों द्वारा कर्मचारियों की छंटनी संकटकालीन पूंजीवाद की अंतर्निहित प्रवृत्ति है तथा महामारी में पूंजीपतियों द्वारा मजदूरों की छंटनी की आम परिघटना का हिस्सा है। इसे संकटकालीन पूंजीवाद कहते हैं, इस पर लिखना है, एकाग्रता नहीं बन पा रही है। पूंजीवाद की अंतर्निहित प्रवृत्ति है संचय, संचय और संचय। यही उसका खुदा है, कुरान, बाइबिल, गीता सबकुछ है। संकटकाल में अन्यान्य कारणों से सामान्य स्थितियों ससा संचय नहीं हो पाता तो अतिरिक्त शोषण के असामान्य तरीके अपनाता है। पूंजी का Organic Composition = Constant capital (Machine etc)/ variable capital (cost of labor power) >.1, यानि मशीन आदि पर थोडी लागत बढ़ाकर तथा मजदूरी में काफी घटोत्तरी करके ऑर्गैनिक कंपोजिसन यानि स्थिर पूंजी और चल पूंजी का भागफल 1 से अधिक रखा जा सकता है। कहने का मतलब कि संचय बरकरार रखने के लिए पूंजीपति छंटनी का सहारा लेता है और बेरोजगारी बढ़ाता है। किंतु इससे पूंजी का संकट खत्म नहीं होता। वेतन न बढ़ने (या घटने) तथा बेरोजगारी बढ़ने से लोगों की कुल क्रय-शक्ति क्षीण होती जाएगी तथा पूंजीवाद भयानक मंदी के दौर में प्रयास कर जाएगा। ऐसी स्थिति में दो ही रास्ते बचते हैं -- 1. क्रांति से व्यस्था में आमूल परिवर्तन (पूंजीवाद का अंत), जिसके लिए पूंजी के संकट के आंतरिक कारक (objective factor) के साथ क्रांतिकारी चेतना से लैस संगठित सर्वहारा की मौजूदगी(subjective factor) भी आवश्यक होता है, जो फिलहाल दृष्टिगोचर नहीं हो रहा है। 2.आर्थिक तथा राजनैतिक व्यवस्था में आमूल सुधार जैसे कि प्रमुख वित्तीय तथा औद्योगिक संस्थानों का राष्ट्रीयकरण एवं व्यापक स्तर पर अर्थतंत्रपर राज्य का नियंत्रण एवं सामाजिक सुरक्षा के प्रतिष्ठानों कान निर्माण एवं उनमें निवेश, सरकारों में जिसकी इच्छाशक्ति नहीं दिखती। अतः पूंजीवाद का संकट फिलहाल गहराता जाएगा। सरकारों को महामारी में अपनी असफलता छिपाने का बहाना जरूर मिल गया है लेकिन संकट का हल नहीं। ईएमआई वर्ग में आत्महत्या की वारदातें बढ़ने की आशंका है। मध्य वर्ग अंधभक्ति की अफीम में भूखे रहकर भी कुछ दिन भजन गाता रहेगा लेकिन अंततः टूटेगा ही। फ्रांस में जनपक्षीय ताकतों की एकता की प्रक्रिया में आशा की एक किरण नजर आ रही है।
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