महामारी के चलते स्वैच्छिक नजरबंदी में कुछ दुखद समाचारों से इतना अवसादित तथा विह्वल रहा कि फेसबुक पर जन्मदिन (26 जून) की अनंत बधाइयों का ढंग से आभार तक न व्यक्त कर पाया, न ही समयांतर का नियमित लेख पूरा करने के अलावा कुछ लिख पाया। मेरी एक पोस्ट एवं मेमरी की तस्वीरों पर अनेकों बधाइयों के अलावा इस ग्रुप के तथा कुछ मित्रों की इस विषय की पोस्टों पर बहुत बधाइयां मिलीं, इनबॉक्स में तो एक दिन पहले से बधाइयों का सिलसिला शुरू हो गया था, फोन पर मिली बधाइयों की बात अलग। दिल बिल्कुल गदगद हो गया। लेख पूरा कर आभार की पोस्ट लिखने की सोच ही रहा था तभी इवि के सीनियर तथा गरीब गुरबा की लड़ाई के साहसी सिपाही और मानवाधिकार संघर्षों के अडिग योद्धा चितरंजन सिंह भाई के देहांत की खबर मिली। दूसरे ही दिन जेएनयू की एक सहपाठी तथा वहीं पर प्रोफेसर मित्र, ऋतु जयरथ के देहांत की खबर मिली। अवसाद की मनःस्थिति से उबरने की कोशिस चल ही रही थी तभी एक घनिष्ठ मित्र, जेएनयू के सहपाठी तथा ग्वालियर विवि में प्रोफेसर के निधन की अविश्वसनीय खबर मिली, 15 दिन पहले बात हुई थी। फिलहाल दुनिया बहुत क्रूर है चलती रहती है। आप सब का हार्दिक आभार।
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