Friday, July 24, 2020

मार्क्सवाद 224 (कम्युनिस्ट पार्टी में विभाजन)

Jitendra Bhushan तेलंगाना पर पार्टी में लंबी बहस चली थी, फौजी दमन के बाद दस्ता बहुत कमजोर हो गया था। 1949 में असली-नकली आजादी के विवाद में जोशी को निकाला गया। 1951 में फिर शामिल किया गया लेकिन वे रणदिवे के खिलाफ अभियान के पक्ष में नहीं थे। जोशी 1928 से मजदूरों-छात्रों-किसानों में सक्रिय थे। सास्कृतिक-बुद्धिजीवी समूहों में भी उनका अच्छी पकड़ थी। जोशा के निष्कासन के बाद बुद्धिजीवियों तथा संस्कृतिकर्मी सदस्यों तथा सिंपेथाइजर भी अलग होने लगे। पार्टी की सदस्यता 90-95 हजार से घटकर 18-20 हजार तक आ गयी। कभी समय मिलेगा तो विस्तार से लिखूंगाष 1955 की कांग्रेस के आबादी अधिवेशन में सोसलिस्टिक पैटर्न ऑफ सोसायटी प्रस्ताव के बाद 1956 के पार्टी कांग्रेस में जोशी ग्रुप हावी हुआ तथा देश में स्वतंत्र पूंजीवाद के विकास और साम्राज्यवाद विरोध के चलते सरकार से सहयोग की नीति अपनाई गयी तथा गुटनरपेक्ष आंदोलन के गठन एवं ख्रुस्चेव युग में सोवियत संघ के समर्थन के चलते 1958 के कांग्रेस में सशस्त्र क्रांति के बदले शांतिपूर्ण क्रांति का प्रस्ताव पारित हुआ। दो लाइनों का संघर्ष जारी रहा जो चीन युद्ध के बाद सतह पर आ गया और "संशोधनवाद" के विरुद्ध विद्रोह की परिणति 1964 में पार्टी के बंटवारे में हुई। 3 साल में ही संशोधनवाद के विरुद्ध बनी सीपीएम भी संशोधनवाद के दलदल में धंस गयी तथा लोहिया की प्रतिक्रियावादी कांग्रेस विरोधी अभियान के तहत दोनों के गुट दक्षिणपंथियों के साथ अलग अलग सूबों में संविद सरकारों में शरीक हुए। जनसंघ को उसी प्रयोग से सामाजिक स्वीकार्यता मिलनी शुरू हुई। सुदीप्त कविराज की पीएचडी थेसिस (जेएनयू लाइब्रेरी में निलेगी) -- Split in India's Communist Movement -- में इस पर पर्याप्त प्रकाश डाला गया है। जेएनयू में कम्युनिस्ट पार्टी के दस्तावेजों का पीसी जोशी आर्काइव हुआ करता था, अपने रिसर्च के दौरान मैंने इसका काफी इस्तेमाल किया था। अभी दिमागी एकाग्रता नहीं बन पा रही है, कभी इस पर विस्तार से लिखने की कोशिस करूंगा। 1928 तक कॉमिंटर्न में लेनिन थेसिस के तहत (रॉय के थेसिस के विपरीत) भारत के कम्युनिस्ट डब्लूपीपी (वर्कर्स एंड पीजेंट्स पार्टी) के रूप में कांग्रेस के साथ राष्ट्रीय आंदोलन में हिस्सेदारी कर रहे थे। 1928 के कॉमिंटर्न के 6ठें कांग्रेस द्वारा संयुक्त मोर्चा के खिलाफ प्रतिक्रांतिकारी प्रस्ताव के चलते पार्टी आंदोलन से अलग-थलग पड़ गयी तब जोसी ने स्थानीय स्तर से शुरू कर राष्ट्रीय स्तर तक डब्लूपीपी के पुनर्गठन शुरू किया। 10935 में कॉमिंटर्न ने जब दुबारा संयुक्त मोर्चा का प्रस्ताव पारित किया तब से 1947-48 तक जोशी ही पार्टी सचिव रहे। 1949-51 के निष्कासन काल के बाद उनका पुनर्वास हुआ।

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