Thursday, July 16, 2020

शिक्षा और ज्ञान 293 (जाति)

आपका सवाल कि मैंने अंबेडकर को अपने जन्मगत परिवेश में रहते हुए पढ़ा या उससे निकलने के बाद? मुश्किल है। व्यक्ति का सीखने और छोड़ने (learning and unlearning) की प्रक्रिया निरंतर है। भारतीय समाज की जातीय संरचना समझने के लिए अंबेडकर एक अहम शिक्षक हैं। आपके तथाकथित उच्चजातीय मित्रों का अंबेडकर को गाली देना अंबेडकर के विचारों की उनकी नासमझी का परिणाम है।

अंबेडकर को गालियों से सुशोभित करने वाले उसी तरह के 'ज्ञानी' हैं जैसे बिना पढ़े गीता को पवित्र ग्रंथ मानने वाले। जातिवाद जैसी अधोगामी व्यवस्था के विरुद्ध लिखने पर अक्सर लोग पूछ लेते हैं कि मैं नाम में मिश्र क्यों लिखता हूं? बौद्धिक संसाधनों की पारंपरिक सुलभता के कारण समाज और इतिहास की वैज्ञानक विवेचना ब्राह्मणों का अतिरिक्त दायित्व है। हा हा। 13-14 साल की उम्र में जब से जातिवाद की विसंगतियां मन को उद्वेलित करने लगीं, उसे समाप्त करने के लिए समझने की जरूरत महसूस होने लगी, तब से इसे समझने की जिज्ञासा तोज होने लगी तथा पहले शिक्षक मिले राहुल सांस्कृत्यायन ('तुम्हारी क्षय हो')। अंबेडकर के बारे में कुछ पढ़ने का अवसर आपातकालकाल में मिला तथा अंबेडकर को पढ़ने का जेएनयू में प्रवेश लेने के बाद (1977)। यूरोप में नवजागरण ने जन्मआधारित योग्यता के आधार पर सामाजिक विभाजन समाप्त कर दिया। भारत में सामाजिक-आध्यात्मिक समानता का संदेश लिए कबीर के साथ शुरू नवजागरण, ऐतिहासिक कारणों से अपनी तार्किक परिणति तक नहीं पहुंच सका। यहां सामाजिक परिवर्तन का यह मुद्दा अंबेडकर ने उठाया।

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