बजरंगी बजरंगदली प्रवृत्ति का छोटा रूप है। संघ वाला संघी हुआ, इन शब्दों पर आपत्ति है तो नहीं कहूंगा। बाकी लंपटता प्रवृत्ति की बात किया है, किसी व्यक्ति को लंपट नहीं कहा। लंपटता का कोई पर्याय सोचता हूं। मैं यह कहता हूं कि विवेक (दिमाग) का इस्तेमाल मनुष्य को पशुकुल से अलग करता है, दिमाग का इस्तेमाल निलंबित करने वाला व्यक्ति दोपाया होने के बावजूद पशुकुल में वापसी कर लेता है। अब कोई अपने ऊपर ले ले तो क्या किया जा सकता है? बाकी यदि आपको अपनी भाषा की तमीज ठीक लगती है तो बताने में शर्म नहीं आनी चाहिए कि कहां सीखा? बाभन से ही नहीं, मुझे लगता है स्त्री-पुरुष, हिंदू-मुसलमान, भूमिहार, अहीर या लाला आदि से भी इंसान बनने की जरूरत है। किसी सेक्स. धर्म या जाति में जन्मने में किसी का कोई हाथ नहीं है, वह तो महज जीववैज्ञानिक दुर्घटना का परिणाम है। कहीं भी पैदा होकर आप क्या सोचते हैं या करते हैं वह महत्वपूर्ण है। बाभन से इंसान बन चुके किसी व्यक्ति को विप्रवर आदि कहना गाली लगती है। लेकिन गाली-गलौज वालों की आदत समझ यह गाली बर्दाश्त कर लेता हूं।
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