Saturday, April 13, 2019

मार्क्सवाद 171 (कन्हैया)

Laxman Yadav क्रांतिकुमार का व्यंग्यात्मक प्रयोग एक खास जातिवादी आख्यान का हिस्सा बन चुका है, इसलिए तुम्हारा इसका प्रयोग संदेह पैदा करता है। कन्हैया या उमर की राष्ट्रीय ख्याति परिस्थितिजन्य है। कहीं जाता हूं तो लोग अनिर्बन के देशद्रोह का नहीं कन्हैया के साथ उमर के देशद्रोह का हिसाब मांगते हैं। कन्हैया का छात्रसंघ अध्यक्ष होने के नाते उमर का मुसलमान नाम होने के नाते। आदर्श स्थिति होती कि जेयनयू आंदोलन के सारे नेता देशभर में भाजपा विरोधी प्रचार करते। सीपीआई तो वैसे भी क्रांतिकारी पार्टी नहीं रह गयी है। लेकिन कन्हैया को सीपीआई अगर चुनाव लड़ाती भी है तो ऐसा कौन आसमान टूट पड़ा? नेहरू की मैं कन्हैया की जीत इसलिए चाहता हूं कि यह देशद्रोह के फासीवादी नरेटिव की पराजय होगी। फेसबुक पर देख रहा हूं कि ज्यादातर क्रांतिकारी लालू-मुलायमवादी फासीवाद-ब्राह्मणवाद को छोड़ क्रांतिकुमार के पीछे पड़ गए हैं जैसे कि सामाजिक न्याय के लिए सबसे बड़ा खतरा वही हो? कन्हैया को भूमिहार में सीमित करने का उपक्रम गलत है, वह संयोग से जन्मना भूमिहार है। अरुंधति ने सही लिखा है, "लोकतंत्र ने जाति का उन्मूलन नहीं किया है। इसने जाति की मोर्चेबंदी और आधिनिकीकरण किया है"। अंबेडकर का सपना प्रतिस्पर्धी जातिवाद नहीं, जाति का विनाश था।

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