कौटिल्य के अर्थशास्त्र में सामाजिक समानता की बात नहीं दिखती, विभिन्न वर्गों की रिहाइश अलग अलग इलाकों में होने के प्रावधान थे। अंत्यज नगर के बाहरी हिस्से में। समानता की बात करने वाले बौद्ध-भिक्षुओं के इत्पीड़न की बजाय सम्मान की परंपरा थी। अपेक्षाकृत सामाजिक समानता लगता है बौद्ध क्रांति का प्रभाव था। DS Mani Tripathi जी मौर्यकाल की नहीं तथाकथित स्वर्णयुग के रूप में गुप्तकाल की बात कर रहे हैं। यही काल है जब वर्णाश्रम व्यवस्थ शास्त्रोचित ढंग संस्थागत हुई जिसकी दार्शनिक पुष्टि के लिए पुराण तथा महाकाव्य लिखे गए। भौतिकवादी दर्शन की चारवाक-लोकायत परंपरा बहुत पुरानी है, लगभग वैदिक परंपरा जितनी ही। इसका मजाक उड़ाने के लिए इसके साथ 'ऋणं कृत्वा घृतं पीवेत' की कंवदंति जोड़ दी गयी।
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