Rajdeep Pathak बाल्मीकि के डाकू से विद्वान बनने या दलित होने की किंवदंतियां ब्राह्मणों ने जानबूझ कर गढ़ा और फैलाया, उसी तरह जैसे कालिदास के मूर्ख से महाकवि बनने की। वैसे तो यह आयु आपकी भी होगी ही कलांतर में। द्वंद्वात्मक भौतिकवाद का एक नियम है कि जिसका भी अस्तित्व है उसका अंत निश्चित है, चाहे युवा अवस्था हो या जीवन। किसी की आयु का माखौल एक अमानवीय "शिष्टाचार" है, शिष्टाचार की आपकी इस अवधारणा के संदर्भ में मैं अशिष्ट रहना ही पसंद करूंगा।
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