जनहस्तक्षेप
फासीवादी मंसूबों के खिलाफ अभियान
और
संस्कृति सरोकार
आमंत्रण
स्वतंत्रता पर हमले-बढ़ता फासीवादी रुझान
पर आम सभा
स्थानः गांधी शांति प्रतिष्ठान, दीनदयाल उपाध्याय मार्ग, नई दिल्ली (नजदीकी मेट्रो स्टेसन)
तारीखः 05 नवंबर 2015
समयः शाम 05 बजे
स्थानः गांधी शांति प्रतिष्ठान, दीनदयाल उपाध्याय मार्ग, नई दिल्ली (नजदीकी मेट्रो
स्टेशन-आईटीओ)।
वक्ताः न्यायमूर्ति (अवकाशप्राप्त) राजिन्दर सच्चर, सुपरिचित लेखक केकी एन दारूवाला,
आलोचक और दिल्ली विश्वविद्यालय के पूर्व प्रोफेसर विश्वनाथ त्रिपाठी, जनवादी लेखक
संघ के महासचिव मुरली मनोहर प्रसाद सिंह, दिल्ली विश्वविद्यालय शिक्षक संघ की
अध्यक्ष नंदिता नारायण, कवि और मीडियाकर्मी पंकज सिंह तथा जानेमाने पेंटर और
लेखक अशोक भौमिक।
प्रिय साथी,
विभिन्न भाषाओं के कवियों और लेखकों, फिल्मकारों, समाज विज्ञानियों तथा वैज्ञानिकों
समेत बड़ी संख्या में बुद्धिजीवियों ने हाल के दिनों में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस)
के गिरोहों के समाज में असहिष्णुता और नफरत फैलाने के अभियान पर कड़ा विरोध जाहिर
किया है। संघ परिवार की इन जघन्य हिंसक करतूतों को सरकार का प्रत्यक्ष या परोक्षकरतूतों को सरकार का प्रत्यक्ष या परोक्षसमर्थन हासिल है। लेखकों का इस तरह के बढ़ते फासीवादी रुझान के खिलाफ सरकार
प्रायोजित संस्थाओं के अपने पुरस्कार लौटाना मानस को आंदोलित करने वाले एक
अभियान का रूप ले चुका है।
नरेन्द्र दाभोलकर, गोविंद पंसारे और एमएम कलबुर्गी की हत्या और दिल्ली के नजदीक
दादरी में अखलाक के सुनियोजित कत्ल के बाद देशव्यापी विरोध प्रदर्शनों का सिलसिला
शुरू हो गया है। नई दिल्ली के केरल हाउस में छापे की घटना से साबित है कि आरएसएस
नफरत फैलाने के अपने अभियान को बंद नहीं करने जा रहा। वास्तव में भारतीय जनता
पार्टी के कई केन्द्रीय मंत्रियों ने अपनी बयानबाजी से इसे हवा ही दी है। इसलिए विरोध भी
जारी है और इसे चलते रहना चाहिए।
हम आजाद भारत के इतिहास के सबसे काले दौर से गुजर रहे हैं। यह दौर इमरजेंसी के दिनों
से भी अधिक स्याह है। इमरजेंसी के दौरान इंदिरा गांधी जोरजबरदस्ती के लिए आम तौर
पर सरकारी दमन तंत्र पर निर्भर थीं। लेकिन मौजूदा सरकार के पास अफवाहें फैलाने,
विरोधियों पर हमले करने और अल्पसंख्यकों के खिलाफ हिंसा और नफरत का अभियान
चलाने के लिए बजरंग दल और राम सेना जैसे आरएसएस के अराजक गिरोह भी हैं।
जनहस्तक्षेप और संस्कृति सरोकार अपना विरोध दर्ज कराने के लिए पुरस्कार लौटाने के
बुद्धिजीवियों के साहस को सलाम करता है। हम साम्प्रदायिक असहिष्णुता के खिलाफ
जनआंदोलनों में शरीक होने के उनके संकल्प की भी सराहना करते हैं। हम इस गंभीर
स्थिति पर व्यापक बहस चलाना चाहते हैं जो सिर्फ जनता के सांवैधानिक अधिकारों ही नहीं
बल्कि संपूर्ण संविधान के लिए खतरा बन चुकी है। हम आपसे अपने इस प्रयास में
हिस्सेदारी का अनुरोध करते हैं।
ह0/ईश मिश्र (जनहस्तक्षेप)
मोबाइलः 9811146846
ह0/ पंकज सिंह (संस्कृति सरोकार)
मोबाइलः 9810731911
फासीवादी मंसूबों के खिलाफ अभियान
और
संस्कृति सरोकार
आमंत्रण
स्वतंत्रता पर हमले-बढ़ता फासीवादी रुझान
पर आम सभा
स्थानः गांधी शांति प्रतिष्ठान, दीनदयाल उपाध्याय मार्ग, नई दिल्ली (नजदीकी मेट्रो स्टेसन)
तारीखः 05 नवंबर 2015
समयः शाम 05 बजे
स्थानः गांधी शांति प्रतिष्ठान, दीनदयाल उपाध्याय मार्ग, नई दिल्ली (नजदीकी मेट्रो
स्टेशन-आईटीओ)।
वक्ताः न्यायमूर्ति (अवकाशप्राप्त) राजिन्दर सच्चर, सुपरिचित लेखक केकी एन दारूवाला,
आलोचक और दिल्ली विश्वविद्यालय के पूर्व प्रोफेसर विश्वनाथ त्रिपाठी, जनवादी लेखक
संघ के महासचिव मुरली मनोहर प्रसाद सिंह, दिल्ली विश्वविद्यालय शिक्षक संघ की
अध्यक्ष नंदिता नारायण, कवि और मीडियाकर्मी पंकज सिंह तथा जानेमाने पेंटर और
लेखक अशोक भौमिक।
प्रिय साथी,
विभिन्न भाषाओं के कवियों और लेखकों, फिल्मकारों, समाज विज्ञानियों तथा वैज्ञानिकों
समेत बड़ी संख्या में बुद्धिजीवियों ने हाल के दिनों में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस)
के गिरोहों के समाज में असहिष्णुता और नफरत फैलाने के अभियान पर कड़ा विरोध जाहिर
किया है। संघ परिवार की इन जघन्य हिंसक करतूतों को सरकार का प्रत्यक्ष या परोक्षकरतूतों को सरकार का प्रत्यक्ष या परोक्षसमर्थन हासिल है। लेखकों का इस तरह के बढ़ते फासीवादी रुझान के खिलाफ सरकार
प्रायोजित संस्थाओं के अपने पुरस्कार लौटाना मानस को आंदोलित करने वाले एक
अभियान का रूप ले चुका है।
नरेन्द्र दाभोलकर, गोविंद पंसारे और एमएम कलबुर्गी की हत्या और दिल्ली के नजदीक
दादरी में अखलाक के सुनियोजित कत्ल के बाद देशव्यापी विरोध प्रदर्शनों का सिलसिला
शुरू हो गया है। नई दिल्ली के केरल हाउस में छापे की घटना से साबित है कि आरएसएस
नफरत फैलाने के अपने अभियान को बंद नहीं करने जा रहा। वास्तव में भारतीय जनता
पार्टी के कई केन्द्रीय मंत्रियों ने अपनी बयानबाजी से इसे हवा ही दी है। इसलिए विरोध भी
जारी है और इसे चलते रहना चाहिए।
हम आजाद भारत के इतिहास के सबसे काले दौर से गुजर रहे हैं। यह दौर इमरजेंसी के दिनों
से भी अधिक स्याह है। इमरजेंसी के दौरान इंदिरा गांधी जोरजबरदस्ती के लिए आम तौर
पर सरकारी दमन तंत्र पर निर्भर थीं। लेकिन मौजूदा सरकार के पास अफवाहें फैलाने,
विरोधियों पर हमले करने और अल्पसंख्यकों के खिलाफ हिंसा और नफरत का अभियान
चलाने के लिए बजरंग दल और राम सेना जैसे आरएसएस के अराजक गिरोह भी हैं।
जनहस्तक्षेप और संस्कृति सरोकार अपना विरोध दर्ज कराने के लिए पुरस्कार लौटाने के
बुद्धिजीवियों के साहस को सलाम करता है। हम साम्प्रदायिक असहिष्णुता के खिलाफ
जनआंदोलनों में शरीक होने के उनके संकल्प की भी सराहना करते हैं। हम इस गंभीर
स्थिति पर व्यापक बहस चलाना चाहते हैं जो सिर्फ जनता के सांवैधानिक अधिकारों ही नहीं
बल्कि संपूर्ण संविधान के लिए खतरा बन चुकी है। हम आपसे अपने इस प्रयास में
हिस्सेदारी का अनुरोध करते हैं।
ह0/ईश मिश्र (जनहस्तक्षेप)
मोबाइलः 9811146846
ह0/ पंकज सिंह (संस्कृति सरोकार)
मोबाइलः 9810731911
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