Jitendra Kumar मित्र, मैं आप को या आपकी राजनैतिक प्रतिबद्धता या ्प्रतिबद्धता के बारे में नहीं जानता, लेकिन (कु)तर्क का आपका तरीका संघी है. पर्यावरण की बात हो या जलसंरक्षण की उनके सिर पर मार्क्सवाद का भूत सवार हो जाता है, थोड़ा पढ़ लेते तो उन्हें ओझा के यहां गये बिना भी थोड़ी राहत मिल जाती. यह कविता योजनाबद्ध तरीके से, सांप्रदायिक विद्वेष फैलाकर चुनावी ध्रुवीकरण के मकसद से, गोमांस की अफवाह के पुराने तरीके से धर्मोंमादी भीड़ जमाकर बजरंगी वीरों द्वारा एक मासूम की कायराना हत्या पर है. इस अपराधिक त्रासदी पर मानवीय संवेदना जताने की बजाय एक वाक्य में कम्युनिस्ट-कांग्रेस-तस्लीमा का हिसाब मांग डाला. मनुष्यों के वर्गीकरण का दायरा थोड़ा बढ़ाइए. अब आप कह रहे हैं कि य़ह एकपक्षीय है. यही बात महेश शर्मा तथा मुजफ्फर नगर का नायक सोम संगीत कह रहे हैं कि मीडिया तथा प्रशासन एकतरफा कार्रवाई कर रहे हैं. मतलब अखलाक़ को कब्र से निकालकर तथा उसके बेटे को आईसीयू से गिरफ्तार कर कार्रवाई करना चाहिए. मान्यवर, धर्म की तो इसमें बात ही नहीं की गई है जो आप सभी धर्मों पर दिमाग लगाने की बात कर रहे हैं?यह कविता धर्मांधता के सांप्रदायिक उंमाद पर टिप्पणी है. जहां तक धर्म पर हमारी राय की बात है तो हर युग में धर्म शासकवर्गों का औजार रहा है. हर धर्म प्रतिगामी होता है क्योंकि वह आस्था की वेदी पर विवेक की बलि की मांग करता है. विवेक ही मनुष्य को पशुकुल से अलग करता है. हिंदू धर्म सर्वाधिक प्रतिगामी है क्योंकि बाकी धर्मों में सैद्धांतिक (सिर्फ सैद्धांतिक) समानता की गुंजाइस होती है जो इसमें नहीं है., इसमें तो सब पैदा ही असमान होते हैं.
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