Wednesday, October 7, 2015

जनहस्तक्षेप- दादरी रिपोर्ट का सारांश

जनहस्तक्षेप
फासीवादी मंसूबों के खिलाफ अभियान

उत्तर प्रदेश में गौतम बुद्ध नगर जिले की दादरी तहसील के बिसाहड़ा गांव में साम्प्रदायिक हिंसा पर जनहस्तक्षेप के जांच दल की रिपोर्ट का सारांश
जनहस्तक्षेप की एक टीम ने उत्तर प्रदेश में गौतम बुद्ध नगर जिले की दादरी तहसील के बिसाहड़ा में हुई साम्प्रदायिक हिंसा की जांच के लिए 02 अक्टूबर 2015 को इस गांव का दौरा किया। इस गांव में 28 सितंबर की रात एक उग्र भीड़ ने गौमांस खाने के आरोप में स्थानीय मुस्लिम निवासी अखलाक की हत्या कर दी थी और हमले में बुरी तरह जख्मी उसका बेटा दानिश अस्पताल में मौत से जूझ रहा है। जनहस्तक्षेप की छह सदस्यीय जांच टीम में जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के शिक्षाविद् डा0 विकास वाजपेयी, दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर ईश मिश्रा, वरिष्ठ पत्रकार राजेश कुमार, अनिल दुबे और पार्थिव कुमार तथा मानवाधिकार कार्यकर्ता शीतल भोपल शामिल थीं।
संदर्भ
यह घटना वैसे समय में हुई जब देश भर में गौवध और गौमांस पर प्रतिबंध के मामलों को लेकर विवाद और साम्प्रदायिक तनाव लगातार बनाए रखने की कोशिश की जा रही है। पिछले कुछ अरसे में देश के विभिन्न हिस्सों में मजहबी तनाव और हिंसा की घटनाओं में लगातार इजाफा हुआ है। इस दौरान राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) और उसके सहयोगी संगठनों के साम्प्रदायिक मंसूबों तथा रूढि़वादी और पुरातनपंथी सामाजिक-राजनीतिक एजेंडे का विरोध करने वाले बुद्धिजीवियों को धमकाए जाने और उनकी हत्या की घटनाएं भी होती रही हैं। बिसाहड़ा में साम्प्रदायिक हत्या को अलग-थलग घटना के बजाय इस घटनाक्रम की ही एक कड़ी के रूप में देखा जाना चाहिए। संघ परिवार का यह साम्प्रदायिक अभियान केन्द्र की नरेन्द्र मोदी सरकार के ‘अच्छे दिन’ के नारे की पोल खुल जाने और आर्थिक नीतियों की नाकामी से पैदा उसकी घबराहट को प्रदर्शित करता है।

घटनाएं और निष्कर्ष
इस हमले से संबंधित विभिन्न घटनाएं पहले से ही सार्वजनिक हो चुकी हैं लिहाजा यहां उन्हें दोहराने की जरूरत नहीं है। लेकिन जनहस्तक्षेप देश के सभी जागरूक नागरिकों का ध्यान घटना के कुछ खास पहलुओं की तरफ खींचना चाहता है। ये तथ्य उन हिंदू साम्प्रदायिक ताकतों के लगातार उभरते और बढ़ते भ्रामक, घातक और विभाजनकारी एजेंडे की ओर इशारा करते हैं जिनका प्रतिनिधित्व संघ परिवार करता है।
1. साम्प्रदायिक ताकतों की नई रणनीति
बिसाहड़ा की घटना छोटे पैमाने पर साम्प्रदायिक तनाव और हिंसा फैलाने की हिंदू साम्प्रदायिक ताकतों की नई रणनीति का ही हिस्सा है। इस रणनीति का मकसद बेहतर आर्थिक स्थिति वाले मुसलमानों को हिंसा का निशाना बनाने के साथ ही इस समुदाय के गरीबों में बहुसंख्यकों की क्रूरता की शक्ति का भय भरना है। अखलाक का परिवार बिसाहड़ा के मुसलमानों के बीच अपेक्षाकृत बेहतर आर्थिक स्थिति में था। इस परिवार के एक से अधिक सदस्य सरकार या प्रतिष्ठित कंपनियों के मुलाजिम हैं। अखलाक और उसके बड़े भाई का परिवार गांव के उस हिस्से में रहता था जहां ऊंची जाति के राजपूतों का वर्चस्व है। गांव में मुसलमानों के लगभग 35 अन्य परिवार इनसे अलग-थलग रहते हैं। अखलाक का बड़ा भाई गांव में अपने परिवार के लिए एक अच्छा मकान भी बनवा रहा था।
दंगाइयों ने बाकी मुस्लिम परिवारों को हाथ तक नहीं लगाया। मगर गांव के सभी मुसलमान इस घटना से इतने आतंकित हैं कि वे नाम गुप्त रखने की शर्त पर भी जनहस्तक्षेप की टीम से बातचीत करने के लिए तैयार नहीं हुए। उन सब के चेहरों पर खौफ और बेबसी का साया स्पष्ट देखा जा सकता था।
2. सुनियोजित साजिश
आरएसएस और उसके सहयोगी संगठन मजहबी विभाजन को गहरा करने के मकसद से समाज के सिर्फ साम्प्रदायीकरण से संतुष्ट नहीं हैं। उनकी कोशिश इस साम्प्रदायिक प्रक्रिया का अधिकतम राजनीतिक लाभ उठाने की है। लिहाजा वे साम्प्रदायिक तनाव और हिंसा की छिटपुट घटनाओं के जरिए इस प्रक्रिया की रफ्तार को तेज करने में लगातार जुटे हुए हैं।
बिसाहड़ा में पहले से कोई साम्प्रदायिक तनाव या असामान्य घटनाक्रम नहीं था जिसकी परिणति ऐसे जघन्य अपराध में होती। वास्तव में पीडि़त परिवार के अपने पड़ोसियों और गांव के अन्य लोगों से बहुत अच्छे रिश्ते थे। बकरीद के मौके पर 25 सितंबर को अखलाक के घर में हुई दावत में कई हिंदू भी शरीक हुए थे। लगभग 500 साल पुराने इस गांव में हिंदुओं और मुसलमानों के बीच तनाव का कोई इतिहास नहीं रहा है और दोनों समुदायों के लोग आपसी भाईचारे के साथ रहते आए हैं।
इस बात के पुख्ता सबूत हैं कि अखलाक और उसके परिवारवालों पर हमला यकायक नहीं हुआ। स्पष्ट संकेत मिले हैं कि पिछले कुछ अरसे से साम्प्रदायिक ताकतें हिंसा फैला कर गांव में दोनों समुदायों के बीच सौहार्द को खत्म करने की तैयारी में लगी हुई थीं। हमले की योजना हिंदुत्ववादी ताकतों ने बेहद सुविचारित ढंग से तैयार की थी। इस योजना पर उन संगठनों के जरिए अमल किया गया जिनका संघ परिवार से सीधा नाता नजर नहीं आता है। क्षेत्र में पिछले कुछ महीनों में ‘राष्ट्रवादी प्रताप सेना’, ‘समाधान सेना’ और ‘राम सेना’ जैसी संदिग्ध ‘सेनाओं’की सक्रियता में बढ़ोतरी हुई है। इसके अलावा ‘गौ रक्षा हिंदू दल’, ‘बजरंग दल’, ‘हिंदू युवा वाहिनी’, ‘आर्य वीर दल’, ‘हिंदू महासभा’ और ‘हिंदू रक्षा दल’ की सरगर्मियां भी बढ़ी हैं।
क. कई सिरों वाला साम्प्रदायिक दानवः टीम ने पाया कि ‘राष्ट्रवादी प्रताप सेना’, ‘समाधान सेना’ और ‘राम सेना’ जैसी कई संदेहास्पद ‘सेनाएं’ इस इलाके में फलफूल रही हैं। टीम ने इन सेनाओं के पोस्टर और बैनर देखे और इनमें से एक, ‘राष्ट्रवादी प्रताप सेना’ के स्थानीय नेता बृजेश सिसौदिया से बातचीत भी की।
26-27 साल के नौजवान बृजेश ने दावा किया कि उसके संगठन का संघ परिवार से कुछ लेना-देना नहीं है। उसने कहा कि ‘राष्ट्रवादी प्रताप सेना‘ जाति आधारित आरक्षण को खत्म कराने के लिए संघर्ष कर रही है। उसने दावा किया कि अखलाक के घर से पाया गया मांस गाय का ही था और वह मोबाइल फोन से खींची तस्वीरों के जरिए इस बात को साबित कर सकता है। लेकिन तस्वीरें दिखाने का अनुरोध किए जाने पर वह कन्नी काटने लगा।
बृजेश ने सरकार की उस जांच रिपोर्ट को मानने से इनकार कर दिया जिसके अनुसार अखलाक के घर से मिला मांस बकरे का था। उसने कहा कि उत्तर प्रदेश की समाजवादी पार्टी सरकार सच को छिपा रही है ताकि इलाके के हिंदू नहीं भड़कें। उसने कहा कि गांव के लोग शांति चाहते हैं मगर मीडिया इस मामले को जरूरत से ज्यादा तूल देकर राजनीतिक रंग देने में लगी है।
‘राष्ट्रवादी प्रताप सेना’ के एक सदस्य यशपाल सिंह को इस मामले में गिरफ्तार किया जा चुका है। भारतीय सेना से अवकाशप्राप्त इस व्यक्ति के घर पर ताला लगा हुआ था। ‘राष्ट्रवादी प्रताप सेना’ ने 20 सितंबर को बिसाहड़ा के नजदीकी जैतवारपुर प्यावली गांव में ‘संकल्प दिवस’ का आयोजन किया था। बृजेश के अनुसार इस कार्यक्रम में जाति आधारित आरक्षण के खिलाफ संघर्ष का संकल्प किया गया। कार्यक्रम की विस्तृत जानकारी देने वाला कोई पर्चा या दस्तावेज बृजेश के पास उपलब्ध नहीं था। ध्यान रहे कि आरएसएस के नेतागण भी पिछले कुछ अरसे से जाति आधारित आरक्षण के खिलाफ बयानबाजी में लगे हैं।
गांव के राजपूतों के अलावा दलितों का एक वर्ग भी इस अफवाह पर यकीन करता है कि अखलाक के घर से मिला मांस बछड़े का ही था।
यह विस्तृत जांच का मसला है कि क्या ये ‘सेनाएं’ सीधे तौर पर आरएसएस से संबंधित हैं। लेकिन इसमें कोई शक नहीं कि ये आरएसएस की साम्प्रदायिक विचारधारा और इलाके में समुदायों के बीच नफरत फैलाने की रणनीति को ही आगे बढ़ा रही हैं। दूसरे, साम्प्रदायिक घटनाओं में सीधे फंसने के बजाय इन्हें फर्जी संगठनों के जरिए अंजाम देने की आरएसएस की रणनीति जगजाहिर है। हैरानी की बात यह है कि स्थानीय पुलिस ने इन ‘सेनाओं’ की मौजूदगी, इनकी गतिविधियों और इनके नेताओं की पहचान के बारे में पूरी तरह अनभिज्ञता जाहिर की।
ख. गांव के शिव मंदिर के पुजारी की भूमिका: यह स्थापित तथ्य है कि अखलाक के घर पर गौमांस होने की अफवाह मंदिर के पुजारी ने ही लाउडस्पीकर के जरिए फैलाई थी। हालांकि उसने कहा कि उसे कुछ लड़कों ने यह घोषणा करने के लिए मजबूर किया था। पुलिस ने इस पुजारी को गिरफ्तार नहीं किया है और वह जांच दल को मंदिर में नहीं मिला। वह 01 अक्टूबर की शाम डाक्टर से दवा लेने के लिए गया था मगर अगले दिन दोपहर तक नहीं लौटा।
यह पुजारी दो या तीन महीने पहले ही मंदिर में रखा गया था। जांच दल ने गांव के जिन लोगों से बातचीत की उनमें से किसी को भी उसके सही नाम या निवास के बारे में जानकारी नहीं थी। गांव के मौजूदा प्रधान संजय राणा ने कहा कि पुजारी का सही नाम उन्हें पता नहीं और वह संभवतः उत्तर प्रदेश के सहारनपुर जिले के किसी गांव से आया है। उन्होंने दावा किया कि इस पुजारी को गांव के पूर्व प्रधान भाग सिंह ने मंदिर में रखवाया था। लेकिन लगभग 15 साल तक गांव का प्रधान रहे भाग सिंह ने पुजारी की नियुक्ति में अपनी भूमिका से इनकार किया। उन्होंने कहा कि मंदिर में नियमित पुजारी रहना जरूरी नहीं है। पिछले तीन साल से मंदिर में कोई पुजारी नहीं था। ‘इंडियन एक्सप्रेस’ में 02 अक्टूबर को प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार मंदिर का मौजूदा पुजारी सहारनपुर का मूल निवासी है मगर बिसाहड़ा आने से पहले गुजरात में किसी स्थान पर था।
इस पुजारी को गांव में लाया जाना, उसका लाउडस्पीकर से भ्रामक घोषणा करना और फिर चुपके से खिसक लेना बेहद संदेहास्पद है। इसे उत्तर प्रदेश में मुरादाबाद जिले की कांठ तहसील के नयागांव अकबरपुर में साल भर पहले हुई साम्प्रदायिक गड़बडि़यों पर जनहस्तक्षेप के जांच दल की रिपोर्ट के अक्स में देखें तो यह संदेह और भी गहरा हो जाता है। नयागांव अकबरपुर में साम्प्रदायिक तनाव की वजह अजान के समय मंदिर में लाउडस्पीकर का इस्तेमाल रहा था। इस गांव में भी कुछ माह पहले आए पुजारी के नाम तक के बारे में कोई नहीं जानता था। मगर उसने कुछ ही दिनों में दलितों के रैदास मंदिर को शिव मंदिर में तब्दील कर दिया था।
इन महत्वपूर्ण समानताओं से दो बातें स्पष्ट होती हैं। एक तो यह कि संघ परिवार साम्प्रदायिक भावनाओं को भड़काने के लिए मंदिरों के जरिए लोगों की धार्मिक आस्थाओं का इस्तेमाल कर रहा है। दूसरी बात यह कि संघ परिवार जिन स्थानों को साम्प्रदायिक तनाव भड़काने के लिए चिह्नित करता है उनमें वह मंदिरों में अपने पुजारी नियुक्त कर देता है।
उत्तर प्रदेश पुलिस को इस तरह की स्थिति का इतनी बार सामना करना पड़ा है कि उसे अब तक समझदार हो जाना चाहिए था। मगर मामले के जांच अधिकारी सुबोध कुमार ने टेलीफोन के जरिए संपर्क करने पर बताया कि पुजारी के खिलाफ कोई मामला नहीं बनता था लिहाजा उसे छोड़ दिया गया। उन्होंने कहा कि उनके पास इस पुजारी का अता-पता है और जरूरत पड़ने पर उसे बुलाया जाएगा।
ग. भारतीय जनता पार्टी का राजनीतिक संरक्षणः तथ्यों से जाहिर है कि अखलाक के घर से मिला मांस गाय का कतई नहीं था। मांस के नमूने की परीक्षण रिपोर्ट कहती है कि यह बकरे का गोश्त था। इसके अलावा जब गौमांस को लेकर चारों तरफ जबर्दस्त उत्तेजना हो वैसे में कोई व्यक्ति बछड़ा चुराने, उसे अपने घर में रखने और उसका वध करने का जोखिम कैसे उठा सकता है? अखलाक का घर एक बेहद तंग गली में है और उसके पड़ोसियों को इसकी भनक नहीं लगना असंभव था। सवाल यह भी है कि कोई व्यक्ति बछड़े को मारने के बाद उसका सिर अपने घर के ही नजदीक क्यों फेंकेगा। जनहस्तक्षेप की जांच टीम को गांव में कोई ऐसा व्यक्ति नहीं मिला जो दावा करता कि उसका बछड़ा गुम हुआ है। ऐसे में केन्द्रीय संस्कृति मंत्री महेश शर्मा का यह बयान अफवाहें फैलाने में उनकी संलिप्तता की ओर इशारा करता है कि यह घटना गांव से बछड़ा गुम होने से पैदा गलतफहमी का परिणाम है।
गांव के प्रधान संजय राणा का आचरण तथा महेश शर्मा, उत्तर प्रदेश के विधायक एवं मुजफ्फरनगर दंगों के आरोपी संगीत सोम और भारतीय जनता पार्टी के कुछ अन्य वरिष्ठ नेताओं के गैरजिम्मेदाराना बयान इस समूचे मामले में भाजपा के इरादों को लेकर संदेह पैदा करते हैं।
o मौजूदा प्रधान की भूमिकाः बिसाहड़ा के ज्यादातर निवासी दावा करते हैं कि इस गांव में हिंदुओं और पीडि़त परिवार समेत मुसलमानों के बीच हमेशा सौहार्दपूर्ण संबंध रहे हैं। यहां तक कि गांव में मस्जिद का निर्माण भी राजपूतों के सहयोग से किया गया था। ऐसे में यह हैरानी की बात है कि संजय राणा को कभी नहीं लगा कि उन्हें प्रधान की हैसियत से पीडि़त परिवार के घर जाना चाहिए। वह दो बार पीडि़त परिवार के घर गए, 01 अक्टूबर को क्षेत्र के पूर्व भाजपा विधायक के साथ और अगले दिन महेश शर्मा के सहयोगी के तौर पर।
प्रधान ने खुद जनहस्तक्षेप की टीम से कहा कि वह भाजपा के आदमी हैं और समूचा गांव उनकी पार्टी का समर्थक है। प्रधान के बेटे और भतीजे को मामले के अभियुक्त के तौर पर गिरफ्तार किया गया है। लेकिन उनकी भाव-भंगिमा से लगा कि उन्हें इन दोनों के जल्दी ही छूट जाने का भरोसा है।
o केन्द्रीय संस्कृति मंत्री का आपत्तिजनक बर्तावः महेश शर्मा बिसाहड़ा में हुई हिंसा की साफ शब्दों में निंदा करने के बजाय इसे गलतफहमी में हुई दुर्भाग्यपूर्ण घटना बता रहे हैं। आखिर इस साम्प्रदायिक खूनखराबे में उनके सहयोगी जो शामिल हैं। इस अपराध की गंभीरता को घटा कर पेश करके वह कहना चाहते हैं कि अपराधियों को सजा दिलाने के बजाय इसकी निंदा कर देना काफी है।
महेश शर्मा जब पीडि़त परिवार से मिले उस समय जनहस्तक्षेप की टीम भी वहां मौजूद थी। उन्होंने अखलाक के परिवार के जख्मों को कुरेदते हुए एक बार फिर कहा कि यह घटना गांव से बछड़ा गुम हो जाने से पैदा गलतफहमी की वजह से हुई। उन्होंने मुस्लिम समुदाय के भयभीत सदस्यों को आश्वस्त करने के बजाय गांव के मंदिर में जाकर अपने समर्थकों के साथ बैठक की। उन्होंने मीडिया पर इस मामले का साम्प्रदायीकरण करने का आरोप लगाया और मीडियाकर्मियों को ‘बुरे नतीजों’ की धमकी दी। उन्होंने कहा कि बिसाहड़ा के निवासी मीडिया को गांव में घुसने नहीं देंगे। उनकी चिंता पीडि़त परिवार को इंसाफ और सुरक्षा दिलाने के बजाय मामले में गिरफ्तार लोगों की खैरियत को लेकर थी। इसके अगले ही दिन बिसाहड़ा की कुछ महिलाओं ने मीडियाकर्मियों पर पथराव किया और उन्हें गांव से बाहर खदेड़ दिया। क्या ग्रामीण महिलाओं का इस तरह पथराव करना किसी असंगठित भीड़ का काम हो सकता है?
पीडि़त परिवार से महेश शर्मा की मुलाकात के फौरन बाद दादरी के एसडीएम राजेश सिंह अखलाक के घर पहुंचे। उन्होंने मीडियाकर्मियों की मौजूदगी में अखलाक के संबंधियों पर मीडिया के सामने भाजपा के नेताओं के खिलाफ नहीं बोलने के लिए दबाव डालने की कोशिश की। उन्होंने अखलाक के परिवार वालों से साफ शब्दों में कहा कि ऐसा करना जारी रखने पर किसी भी नतीजे के लिए वे खुद जिम्मेदार होंगे। बाद में मीडियाकर्मियों ने जब उनसे इस बारे में पूछना चाहा तो वह बिना कुछ बोले वहां से उल्टे पांव लौट गए।
जनहस्तक्षेप की टीम अपने संक्षिप्त दौरे के बाद इस नतीजे पर पहुंची है कि बेगुनाह अखलाक की हत्या और उसके बेटे दानिश पर कातिलाना हमला एक सोची-समझी साजिश का परिणाम था। इलाके की हिंदू साम्प्रदायिक ताकतों के इस हमले को भाजपा और संघ परिवार के अन्य सहयोगी संगठनों का पूरा समर्थन हासिल था। इस हमले के पीछे उनका मकसद क्षेत्र में साम्प्रदायिक टकराव पैदा करना था ताकि उत्तर प्रदेश के अगले विधानसभा चुनावों में इसका फायदा उठाया जा सके।
जनहस्तक्षेप अपनी जांच के आधार पर निम्नलिखित मांगे करता है-
• जनहस्तक्षेप अखलाक के परिवार की इस मांग का पूरा समर्थन करता है कि इस जघन्य अपराध में शामिल लोगों को बिना किसी देरी या ढिलाई के सख्त सजा दिलाई जाए।
• जनहस्तक्षेप मांग करता है कि अपराधियों को बचाने के मकसद से इस नृशंस हत्या को गलतफहमी का परिणाम बताने वाले महेश शर्मा को केन्द्रीय मंत्रिमंडल से फौरन बर्खास्त किया जाए। मीडियाकर्मियों को धमकी देने के मामले में उनके खिलाफ प्राथमिकी दर्ज कर इस बात की जांच कराई जाए कि क्या अगले दिन मीडिया पर हुए हमले में उनका हाथ था।
• जनहस्तक्षेप साम्प्रदायिक ताकतों को मनमानी करने की पूरी आजादी देने वाली और मुसलमानों के खिलाफ हिंसा रोकने में नाकाम उत्तर प्रदेश सरकार के रवैये की कड़ी निंदा करता है। वह मांग करता है कि इस घटना के पीछे की पूरी साजिश को उजागर करने के लिए इसकी उच्च स्तरीय जांच कराई जाए।
• जनहस्तक्षेप साम्प्रदायिक ताकतों पर नकेल कसने में नाकाम स्थानीय प्रशासनिक और पुलिस अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की मांग करता है। उसका मानना है कि साम्प्रदायिक सौहार्द को नुकसान पहुंचाने के लिए सक्रिय विभिन्न ‘सेनाओं’ की गतिविधियों पर नजर रखने और उन्हें रोकने में पुलिस की अक्षमता के कारण क्षेत्र में कानून और व्यवस्था का गंभीर संकट पैदा हो गया है।
ईश मिश्रा
संयोजक
संपर्कः 9811146846

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