कहा था सुकरात ने पचीस सौ साल पहले
समझे जो अपने को सर्वज्ञ
होता है ज्ञान की परिभाषा से अनभिज्ञ
होता नहीं कोई परम ज्ञान
वैसे ही जैसे होता नहीं कोई अंतिम सत्य
लेकिन मठाधीश बने सर्वज्ञ
इतना जानता है कि कुछ और जानने से घबराता है
ओढ़ आभामंडल की चमकती चादर
जिज्ञासा के खतरों से बाल-बाल बच जाता है
कूपमंडूक बन इतराता है सर्वज्ञ
हर सर्वज्ञ याद दिलाता है
गोरख पांडे के समझदारों का गीत के किरदार का
जो आज़ादी और बेराजगारी के खतरों से बाल बाल बच जाता है
जिज्ञासा का खतरा न हो तो
कुछ भी कर सकता है यह सर्वज्ञ
(ईमिः 26.10.2015)
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