कल हम, जनहस्तक्षेप के साथी बसेहड़ा गये थे. डरावना दृश्य है. परसों वहां मोदीक्रीत ओवैसी गया था तथा कल संस्कृति मंत्री, महेश शर्मा. 1970 के दशक में जब वह विद्यार्थी परिषद का संगठनमंत्री था उसके बाद पहली बार देखा. वह पीड़ित परिवार के किसी सदस्य से नहीं मिला. उनके घर के सामने प्रेस वालों से वही बकवास किया जो अखबार में सुबह पढ़ते गये थे. "गलतफहमी के हादसे" को राजनीतिक रूप देने के खिलाफ चेतावनी दी. उसी मंदिर में जाकर जनसभा को संबोधित किया जहां से पुजारी ने लाउडस्पीकर पर अखलाक के घर गोमांस होने की घोषणा की थी. वहां भी उसने वही धमकियां दुहराई कि हादसे को प्रायोजित बताने की कोशिस के खतरनाक नतीजे होंगे. पत्रकारों को भी धमकाया. मुसलमान इतने आतंकित हैं कि कोई मुंह खोलने पर राजी नहीं हैं. 2017 चुनाव तक उत्तर प्रदेश में पता नहीं कितने अखलाखों की नरबलि होगी. चिंता की बात है. एक टीवी पत्रकार ने यह कर कि यह तो मात्र ट्रेलर है. और डरा दिया. हिंदुस्तान को जर्मनी बनने से बचाना है.
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