Gender is not an attribute of biology nor any eternal abstract idea like conception of God(s) that has traveled to us through generation. Gender is not an idea but ideology that is created, recreated; maintained an perpetuated and passed on to next generations through the conduct of our life processes and existing social paradigm. This post, so "unnatural" generalization about "nature of woman" by Prof Chaturvedi in day-to-day discourse in the virtual world is an act of perpetuation of the ideology of gender.
दर-असल बात उल्टी है. पति पत्नियों को मूर्ख समझते रहे हैं और मर्दवादी वैचारिक वर्चस्व के चलते फत्नियां भी "परमेश्वर " को "अंतिम सत्य का वाहक " मानकर उनकी बात से सहमत हो जाती थी और उनकी सारी बातें सुनती और मानती थी. तीव्रगामी नारी प्रज्ञा और दावादारी के अभियान के परिणाम स्वरूप महिलायें धीरे-धीरे उनकी अनुचित बातें सुनने-मानने से न सिर्फ इन्कार करने लगीं बल्कि इस मामले में पारस्परिकता का अनुरोध-आग्रह करने लगीं. इससे पतियों के मालिकाना "हक़ " का हनन होने लगा और सांस्कृतिक संत्रास त्रस्त बेचारा पति " पुरुष व्यथा" से ग्रस्त रहने लगा. तरस और दया के पात्र बेचारे पति. पत्नियों का खुद को मूर्ख मानने से इंकार से् पतियों को लगने लगा कि वे उन्हें मूर्ख मानने लगीं. हे दुनिया के "पतियों" रिश्तों में समानता और पारकस्परिकता के सुख को समझें तो सारे तनाव समाप्त.
दर-असल बात उल्टी है. पति पत्नियों को मूर्ख समझते रहे हैं और मर्दवादी वैचारिक वर्चस्व के चलते फत्नियां भी "परमेश्वर " को "अंतिम सत्य का वाहक " मानकर उनकी बात से सहमत हो जाती थी और उनकी सारी बातें सुनती और मानती थी. तीव्रगामी नारी प्रज्ञा और दावादारी के अभियान के परिणाम स्वरूप महिलायें धीरे-धीरे उनकी अनुचित बातें सुनने-मानने से न सिर्फ इन्कार करने लगीं बल्कि इस मामले में पारस्परिकता का अनुरोध-आग्रह करने लगीं. इससे पतियों के मालिकाना "हक़ " का हनन होने लगा और सांस्कृतिक संत्रास त्रस्त बेचारा पति " पुरुष व्यथा" से ग्रस्त रहने लगा. तरस और दया के पात्र बेचारे पति. पत्नियों का खुद को मूर्ख मानने से इंकार से् पतियों को लगने लगा कि वे उन्हें मूर्ख मानने लगीं. हे दुनिया के "पतियों" रिश्तों में समानता और पारकस्परिकता के सुख को समझें तो सारे तनाव समाप्त.
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