Monday, November 25, 2013

सोसाइटी है साहबों की

सोसाइटी है साहबों की
जनतांत्रिक नवाबों की
नवाबों को होता है खतरा जान का
फिरकापरस्त अभिमान का
मरती हैं कितनी ही इशरत ज़हाने
निकलता है वो जब खून बहाने
आए उसका जिसपर दिल
हो जाती आज़ादी के नाकाबिल
हाथ लगे गर उसके मायूसी
करवाता है उसकी जासूसी
लटकती है जब रुसवाई की तलवार
जाँच के नाटक का करता पलटवार
हो जिससे न कोई और जाँच
आए नहीं नवाबी पर आँच
ऐसे होते ये महामहिम
मुंसिफ बन जाते ये मुज़रिम
उठेगा जब तूफान-ए जनवाद
खाक में मिल जाएंगे ये सारे नवाब
[ईमि/26.11.2013]

No comments:

Post a Comment