Saturday, November 16, 2013

न धर्म को न धर्म की

न धर्म को मानता हूं न धर्म की
कद्र करता हू इन्सानी कर्म की
खुदा के अमूर्त भय का पाखंड-तंत्र
है सभी मज़हबों का कारगर मंत्र
दिखाता है मजहब  डर दोजख-ओ-खुदा का
हरकारा है मगर यह हर फरेबी नाखुदा का
छोड़ दो ग़र डरना भूत-ओ-भगवान से
बढ़ोगे राह-ए-इंसानियत पर निडर इंसान से
[ईमि/17.11.2013]

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