Sunday, November 17, 2013

दर्द-ए-ग़म-ए-जहां

है  इन आँखों में समाया हुआ दर्द-ए-ग़म-ए-जहां
चेहरे पर लिखा है तकलीफों का मुकम्मल फसाना
चल रहा है मन में नये खयालों का उहा-पोह
रचने को कुछ नया पुराने का छोड़ मोह
भरेगी जब यह नभ के पार की नई उड़ान
रोक नहां सकेंगे इसको आँधी-तूफान
[ईमि/17.11.2013]

No comments:

Post a Comment