मनु महाराज ने औरत की आज़ादी के खतरों से सदियों पहले आगाह किया था. "बचपन में पिता के और विवाक के बाद स्वामी के और स्वामी की मृत्यु के बाद उसे पुत्रों के आधीन रहना चाहिए, किसी भी हालात में औरत आज़ाद नहीं रहनी चाहिए", उसके बाद तमाम "जाहिल चिन्तक" अलग अलग तरीकों से यही बात दुहराते आ रहे हैं. आज जब मौक़ा मिलते ही अपनी प्रज्ञा और प्रतिबद्धता से नारी आज़ादी की दावेदारी कर रही है तो सारा-का-सारा मर्दवाद बौखला गया है और तमाम लाक्स्मन रेखाएं खींच रहा है. बलात्कार जैसे जघन्य अपराधी की बदनामी नहीं होती, बलकृत कलंकित हो जाती है जिसे बदनामी के डर से अपनी पहचान छिपानी पड़ती है. पैदा होते ही उन्हें समझाया जाता है कि तुम कमजोर हो. मैं तो अपनी छात्र्राओं को कहता हूँ भौतिक कमजोरी भी तमाम मिथों की ही तरह मिथ है, इसे तोडो, सहो मत प्रतिकार करो और देखो तुम्हारे अंदर कितनी ताकत है. मैं दो बेटियों का फक्र्मंद बाप हूँ, लेकिन तमाम बापों का बेटियों के लिये जो डर होता है वह मेरा सरोकार है.
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
सटीक !
ReplyDeleteTo the point
ReplyDeleteशुक्रिया
ReplyDelete