Friday, March 29, 2013

विकल्पहीनता मुर्दा कौमों की निशानी है

विकल्पहीनता मुर्दा कौमों की निशानी है
ईश मिश्र

किसी ने कहा
माना कि बुरा है ज़र का निजाम
मगर और रास्ता क्या है?
एक ही रास्ता है निजाम-ए-आवाम
होती नहीं कभी ज़िंदा कौमें विकल्पहीन
विकल्पहीनता मुर्दा कौमों की निशानी है
डालना है विप्लवी जान इन ज़िंदा लाशों में
हाथ लहराते हुए हर लाश तब आगे बढ़ेगी
तरासेंगी की नया विकल्प आगामी पीढिया
इतिहास की गाड़ी में बैक गियर नहीं होता
खत्म तो होगा ही ज़र का निजाम भी
इतिहास में कुछ भी अजर-अमर नहीं होता
[ईमि/३०.०३.२०१३]

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