Sunday, March 3, 2013

लल्ला पुराण ७४

ProfAmitabh Pandey  अब मैं यह नहीं कहना चाहता कि आपने ऋग्वेद पढ़ा ही नहीं है. जी हाँ इतिहास की गाड़ी में बैक गीयर नहीं होता रीयार्विव मिरर जरूर होता है. मैक्समूलर जैसे विद्वानों की प्रशंसा  से कोई ग्रन्थ महान नहीं होता. किस आधार पर आप कह सकते हैं कि ऋग्वेद दुनिया का प्राचीनतम ग्रन्थ है? हमारे पूर्वजों को अक्षर ज्ञान बुद्ध-काल के आस-पास हुआ, उसके पहले हरप्पा. बेबीलान और मेस्पोतामियाँ सभ्यताओं में नागरिक जीवन एवं लिपि एवं लेखन की परम्परा स्थापित हो चुकी थी. भारतीय संस्कृति क्या है और वेद उसका मूल श्रोत कैसे है? अगर ऋग्वेद मूल है तो बाद के प्रक्षेपित ब्रहमा-विष्णु- उसके अवतारों और उनके हनुमान जैसे चमचों जैसे अवैदिक  देवी-देवताओं को निकाल बाहर कीजिये देवताओं की  संस्कृति से.हमारे ऋग्वैदिक पूर्वज अर्ध-खानाबदोष चरवाहे थे जो अस्थायी गाँवों मे रहते था और इतिहास के उस आदिमकाल में वेद मन्त्रों जैसी रचनाओं के माध्यम से ताब तक के बुद्धिविकास के हिसाब से प्राकृतिक शक्तियों के प्रति भय और श्रद्धा के भाव से आराधना के मन्त्र सराहनीय हैं, लेकिन पोंगापंथी बिना दिमाग लगाए सब का श्रोत अतीत में खोजते हैं और समाज में अधोगामी प्रवृत्तियों को बढ़ावा देते हैं. मैं दावे के साथ कहता हूँ कि वेदों को सारे ज्ञान का श्रोत मानाने वाले लोगों ने  वेद कभी पढ़ा ही नहीं वरना वे इंतनी अनैतिहासिक जहालत की बातें न करते. उन्दली-कुंडली सब बकवास  है मेरे दादा जी पंचांग के ज्ञाता माने जाते थे और हम सब की कुण्डलियाँ उन्ही की हस्तलिपि में हैं, मैंने अपनी संभाल कर कहीं उसके ऐतिहासिक महत्व की वजह से रखा है. कौटिल्य ने कहा है कि सितारों में भविष्य खीजने वालों के भाग्य के सितारे धुल में मिल जाते हैं. ज्योतिष एक अतार्किक और अविग्यानिक फरेब है जो भी इसे विज्ञान के समतुल्य रखता है वह या तो जाहिल है या फरेबी. पत्थर और अन्य तांत्रिक विधियों से भाग्य बदलने के धंधेबाजों का धंधा ताब तक चलता रहेगा जब तक धर्मभीरू अज्ञात अदृश्य ताकत के बदौलत पुखराज-सुखराज जैसे पाखंडों से आईएएस बनाने वालो या अन्य तरह भाग्य बदलने वाले फरेबियों का धंधा चलता रहेगा. ज्योतिषियों और तांत्रिकों और सभी तरह के धार्मिक गुरुघंटालों को अपनी बात प्रमाणित करने की चुनौती को मैं फिर से दुहराता हूँ. और दुनियके सारे भगवानों-भूतों को भी खुली चुनौती दुहराता हूँ कि मेरा जो चाहें बिगाड़ लें, काल्पनिक अवधारणाएं आप का कुछ नहीं बिगाड़ सकतीं.

Arun Kumar Yadav  मुझे नहीं मालुम कि मुक्तिबोध पर हारे को हरनाम का दोषी ठहराने के स्रोतों की प्रामाणिकता क्या है? नामवर सिंह गीता सुनना चाहे कि नहीं, वैसे वे खुद संस्कृत के बड़े ज्ञाता हैं. धर्म के बारे में मार्क्सवाद की एक ठोस समझ है जिस पर काफी लिखा जा चुका.भगत सिंह के पास अंत समय में जब ग्रंथी पहुंचा तो उन्होंने क्या जवाब दिया वह मेरे लिये मार्क्सवादी/क्रांतिकारी का प्रामाणिक वक्तव्य है. मैं ईश्वर को गालियाँ नहीं देता बल्कि एक काल्पनिक अवधारणा का मज़ाक उडाता हूँ और  वायदा करता हूँ जब तक किसी ईश्वर किस्म की कोई अज्ञात शक्ति ज्ञात नहीं हो सकती मैं अंत समय में किसी ऐसी काल्पनिक निकाय की शरण नहीं जाऊंगा. जो प्रमाणित न हो वह सत्य नहीं. सत्यभक्त क्या थे क्या किये यह तो वही बताएँगे, भारत में मार्क्सवाद का अध्ययन सत्य्ब्हत के पहले से है. लाला हरदयाल ने मार्क्स की जीवनी लिखा था रूसी क्रान्ति के पहले. असहयोग आंदोलन के अस-पास दंगे ने मार्क्स और गांधी के तुलनात्मक अध्ययन पर पुस्क लिखा था. यहाँ बात ज्योतिष की भविष्य वाणियों और पुखराज-सुखराज जैसे पत्थरों की कृपा से आई.ए.एस बनने बनाने के फरेबी प्रपंचों पर हो रही थी.परिक्षा के दिन अपनी पढ़ाई पर विश्वास की बजाय हनुमान जी की कृपा(जो स्वयं एक रिपा पात्र अनुचर है) परीक्षा में अच्छा करने की उम्मीद से मंदिर जाने वालों में विज्ञान के विद्यार्थी ज्यादा होते हैं. यह विज्ञान की शिक्षा का दुर्भाग्य है. 

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