Sunday, March 3, 2013

लल्ला पुराण ७३

मन्त्र-तंत्र के मायाजाल  को मैंने बचपन में जान लिया था. सिगरेट पीने निकला तो कोई और मीर टहलते मिल गयीं और कुछ बहस में हम दोनों उलझ गए. अमिताभ जी ई दार्शनिक बातों का जवाब और पुष्पा जी के गुरू को दी गयी अमूर्त चुनौती को ठोस रूप देने से पहले आप लोगों से अपना एक अनुभव शेयर करता हूँ. मैं बता ही चुका हूँ कि मेरा जन्म और पालन-पोषण एक रूढ़िवादी, कर्मकांडी, "संसकारी" "कुलीन" परिवेश में हुआ जहाँ पंचांग और मन्त्र-तन्रों को बहुत महत्व प्राप्त था. इसके पराकाष्ठा की मिसाल कभी बताऊंगा. मेरे पिताजी अन्य मन्त्रों के साथ बिच्छू का भी मन्त्र जानते थे. जिस समय की बात है मैं सही-सही तो नहीं बता सकता लेकिन इतना छोटा था कि अगल-बगल के गाँव के लोग रात में सोते से जगाकर गोद में उठा ले जाते थे.मैं अपने पिताजी को बिच्छू का मन्त्र झाड़ते ध्यान से देखता था. राख या मिट्टी फैलाकर एक लकीर खींचते थे और उस पर जिस अलंग में बिच्छू ने डंक मारा है उधर का हाथ या पैर रेखा पर रखवाते थे. कुछ जमीं पर और हथेली पर लिखते थे,और ३ बार हथेली पीटते थे. ५-६ बार यही प्रक्रिया दुहराते थे और दर्द कंधे से उंगली तक आ जाता था. मैंने वह पढ़ लिया था. एक दिन एक तेली की लड़की बिच्छू दंश से दर्द से लोट रही थी. पिताजी घर पर नहीं थे. मुझे मौक़ा मिल गया. मैं बोला कि चलो मैं झाड देता हूँ. पिताजी के तामझाम की नक़ल पेश किया और उसका दर्द बहुत बघत गया. रातोरात मैं मशहूर हो गया और पिटा जी का भाव घट गया. हर दीवाली को मेरे हमउम्र मेरी जासूसी करते थे कि मैं कहीं मन्त्र जगाता होऊंगा. सातवीं-आठवी तक मैं उपब गया और लोगों को बता दिया कि मुझी कोई मन्त्र नहीं आता. मेरे पिताजी ने मुझसे कभी नहीं पूछा कि मुझे कहाँ से उनका मन्त्र पटा चला?? यानि कि उना भी मन्त्र मेरी ही तरह फरेब ही था. धर्म-कर्म/मन्त्र-तंत्र पर संदेह का और उन सब पर सावाल की यह शुरुआत थी. १३-१४ में जनेऊ तोड़ने तक मन्त्र-तंत्र और कर्मकांड का फरेब मेरी समझ में आ अग्या और तभी रात की ट्रेन से हास्टल से घर की यात्रा जिसमे ७ मील स्स्तेसन से पैदल का रास्ता था. रास्ते में पड़ने वाले सभी भूतों को चुनौती देता जाता था (गाली-गलौच के साथ) कोई मेरा कुछ नहीं बिगाड़ पाया और भूतों का भय खत्म. अगले ३-४ सालों की हर बात पर सावाल करते करते-नाश्तिकता की मंजिल तक पहुँचते पहुँचते सारे भगवानों की हकीकत समझ में आ गयी और उन काल्पनिक शक्तियों का भी भय खत्म हो गया.

पुष्पा जी कोई तीसरी शक्ति सिर्फ हमारी कल्पना में है. आप मीटिंग करवा दें तो अभी माँ लूंगा. सत्य वही जो प्रमाणित किया जा सके. पहले मैं मिंकी की बात का जवाब देना चाहता था कि भय कुदरती नहीं होता समाजीकरण का परिणाम है जससे तर्क-बुद्धि से मुक्ति मिलती है. ज्यादातर भय अमूर्त और अज्ञात होते हैं.. मैं अपनी एक कविता अभी खोजकर कापी पेस्ट करता हूँ.

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