मई दिवस पर कलम की याद
ईश मिश्र
क्या सोच कर तुम मेरा कलम तोड़ रहे हो,
इस तरह तो ,कुछ और निखर जायेगी आवाज़
थम नहीं सकता अब यह विप्लवी राग,/ तोड़ तो चाहे तो सारे सामान-ओ-साज़./ बिगुल बजाया था शिकागो के कामगारों ने/ रूस तक जल्दी ही पहुँच गयी उनकी आवाज़/ देख हथियारबंद मजदूर दस दिनों के विप्लव में / हिल गया था धरती पर सारे सरमायेदारों का राज/ चीन में फहरा जब लाल फरारा,दुश्मन हुआ बहुत ताराज/ लिखा उन्होंने जो लहू से अपने, इन्किलाब जिंदाबाद/ गूँज गयी दुनिया भर में जल्दी ही उनकी आवाज़// मई दिवस को लाल सलाम, इन्किलाब जिंदाबाद/ जिंदाबाद इन्किलाब, इन्किलाब जिंदाबाद.
ईश मिश्र
क्या सोच कर तुम मेरा कलम तोड़ रहे हो,
इस तरह तो ,कुछ और निखर जायेगी आवाज़
थम नहीं सकता अब यह विप्लवी राग,/ तोड़ तो चाहे तो सारे सामान-ओ-साज़./ बिगुल बजाया था शिकागो के कामगारों ने/ रूस तक जल्दी ही पहुँच गयी उनकी आवाज़/ देख हथियारबंद मजदूर दस दिनों के विप्लव में / हिल गया था धरती पर सारे सरमायेदारों का राज/ चीन में फहरा जब लाल फरारा,दुश्मन हुआ बहुत ताराज/ लिखा उन्होंने जो लहू से अपने, इन्किलाब जिंदाबाद/ गूँज गयी दुनिया भर में जल्दी ही उनकी आवाज़// मई दिवस को लाल सलाम, इन्किलाब जिंदाबाद/ जिंदाबाद इन्किलाब, इन्किलाब जिंदाबाद.
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