Friday, April 27, 2012

मरना चेहरे पर या उसूलों के लिए

मरना चेहरे पर या उसूलों के लिए
ईश मिश्र

 एक नारी ने जब ज़िंदगी
 ज़िंदा-दिली से जीने का इजहार किया
 मर्दवादी समाज से डरने से इंकार किया
उसके रीति-रिवाज़ मानने से इंकार किया
 रहने के अलग तरीकों का ईजाद किया
उसूलों के लिए मर-मिट जाने का ऐलान किया
 एक पुरुष ने कहा तब
तुम्हारा हुस्न खुदा की इनायत है
 दिल आ जाए किसी का भी जायज है
नारी ने किया पलटवार
 बात तो उसूलों के लिए टकराने की थी
दिल आने की बात कहाँ से आ गयी
दिल देता है तवज्जो जीने को
 चेहरे पर, मरने की बात कहाँ से आ गयी
 मरते हैं आप जिसके चहरे पर
 उसमें है एक अदद दिमाग भी
 जो कलम बना है औजार उसका
बन जाएगा हथियार भी
और भी निखर जायेगी विद्रोह की आवाज
सौंदर्य के सुनहरे पिंजरे में क़ैद की 
हर शाजिश के साथ.

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