Wednesday, May 30, 2012

कलम का डर

कलम का डर 

 कलम अब और नहीं चुप
 रात को रात कहो धूप को धूप
बोलोगे गर सेठ जयप्रकाश के खिलाफ
चिदाम्बरम की वर्दियां नहीं करेंगी माफ
करोगे गर मनमोहन के गौहाटी के महल की बात
 समझा जाएगा इसे कलम का खुराफात
विश्व बैंक का कारिन्दा
हो सकता है किसी भी राज्य का बासिन्दा
लेकिन कलम रहेगा मौन
बोलेगा फिर कौन?
 होगा कलम जब मुखर
 सुनाई देगा हर जगह विद्रोह का स्वर
 नहीं होगा तब लोगों में वर्दियों का खौफ
कलम हो जाएगा जब बेख़ौफ़
काँपेगा वर्दियों का मालिक थर-थर
 करदेगा कलम जब आवाम को निडर.
[ईमि/३०.५.२०१२]

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