Thursday, May 31, 2012

ईमानदार

किसी और पोस्ट पर किसी ने कहा ईमानदार रहना बहुत मुश्किल काम है. उस पर अपनी टिप्पणी यहाँ चेंप रहाहूँ. ईमानदार बनना बेईमानी से बहुत ज्यादा आसान और आनंददायी. लोग मूर्ख और अभागे हैं जो ईमानदारी के सुख और नैतिक बल से अपने को वंचित रखते हैं. और जिनकी बेईमानी से देश पर भयानक दुष्परिणाम होता है, देश के क्रीम समझे जाने वाले (प्रोफ़ेसर/आईएएस/आईपीएस आदि) ये दुर्वुद्धि के मूर्ती मुफ्त में बिकते हैं और जितनी बार बिकते/गिरते हैं अपनी आत्मा को अंशतः मारते हैं और अंत में खोखले कृपा-पात्र बनकर पैसे और ताकत के गुमान में दयनीय ज़िंदगी जीते हैं. इतना वेतन-भत्ता-पेंसन मिलती है कि इस जीवन के लिए उन्हें हराम की आमदनी की आवश्यता नहीं होती. अब नाल्को का निदेशक, श्रीवास्तव जो बीबी के साथ जेल की सोभा बढ़ा रहा है, नहीं भी पकड़ा जाता तो भी वह कमीना सोने के बिस्कुट तो बैंक के लाकर में ही रख कर मरता. या म.प्र. कैडर के जो आईएएस पति-पत्नी करोड़ों रूपये बिस्तर के नीचे रखकर तनाव में रात बिताते थे, वे टुच्चे नहीं भी पकडे जाते तो देश भर में फ़ैली अपनी जमीनें तो यहीं छोड़ जाते. पूंजीवाद भ्रम पैदा कर्ता है कि कोई भी पूंजी-संचय कर सकता है जब कि सत्य यह है कि केवल पूंजी पति ही संचय कर सकता है. अफसर और वुद्धिजीवी खुद को बेंचकर कीमत वापस पूंजीपति को दे देते हैं जो निवेश करता है और और नेता-अफसर-वुद्धिजीवी खरीदता है जो फिर वापस उसे ही देते हैं और अपार संपत्ति के स्वामित्व के भ्रम जीते रहते हैं. हराम और लूट का पैसा ये अभागे शेयर/बांड/फिक्स्ड डिपाजिट/बीमा/जमीन/हवाला आदि में निवेश कर पूंजीपति को वापस कर देते हैं. बाजीराम जैसे कोचिंग इम्तहान में नंबर पाना सिखाते हैं, नैतिक प्राणी बनना नहीं. यदि नैतिक और भ्रष्ट ज़िंदगी के + और - का आत्म-हित के ही परिप्रेक्ष्य से विवेकपूर्ण हिसाब लगाएं तो पायेंगे कि नैतिकता की तरफ ज्यादा + हैं.

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