कोई भी राष्ट्रपति बने ज्यादा उम्मीद यही है कि कठपुतली ही रहेगा.ज्ञानी जी जब राष्ट्रपति बने थे तो जे.एन.यू. में मूर्ख राष्ट्रपति की आवश्यकता पर चुटकुला प्रचलित हुआ था, VICTOR 45 वाला. करते वही सब हैं, ज्ञानी जी शरीफ थे कह भी दिए कि वे तो गांधी-नेहरू परिवार में झाडू लगाकर भी खुश रहेंगे. राज्य सभा राज सभा बन गयी है. ग्रेग चैपल ने क्रिकेट के सम्बन्ध में भारतीयों की चिन्तन प्रणाली पर बहुत सटीक कमेन्ट किया. उन्होंने कहा कि भारतीयों में आमतौर पर नेतृत्व क्षमता का अव्हाव होता है क्योंकि उनके बदले सोचने और निर्णय लेने का काम उनके माँ-बाप और शिक्षक करते हैं. इसकी सबसे स्पष्ट अभिव्यक्ति राजनीति में दिखती है. बहुमत दल के विधायक नहीं आलाकमान मुख्य मंत्री का चुनाव करता है क्योंकि विधायक का अपना विवेक नहीं होता उसके बदलव सोचने का काम १० जनपथ या नागपुर करता है. विधायक और सांसद जर-खरीद गुलाम दीखते हैं.
अभी तक जितने भी राष्ट्रपति हुए हैं, डाक्टर के.आर.नारायण को छोड़कर, सभी कठपुतली हुए हैं. आपातकाल पर दस्तखत करने वाले राष्ट्रपति फखरुद्दीन अहमद की गुसलखाने में गिरकर मौत आज भी रहस्य बनी हुई है.
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